24 फरवरी 2023/ फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
आज कई बार अनजाने में जानकर, या अपनी मान और मूंछ को ऊंचा रखने में , हम ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जिससे साधु संतों के स्वाभिमान को, गरिमा को, ठेस पहुंचती है। ऐसे कदमों पर हमें जरूर विचार करना चाहिए। सोशल मीडिया पर मिली, एक पोस्ट के आधार पर कुछ बिंदु इस प्रकार हैं:
1. साधु को आमंत्रण का श्रीफल नही चढ़ाना – कुछ लोग ये कहते है कि “हम साधु को गांव में लाने का श्रीफल नही चढ़ाएंगे। उनको आना है तो वे आये, आने के बाद देखेंगे…”
अब देखिए…
पिच्छीधारी साधु आहार के लिए बिना निमंत्रण के और अन्य जगह निमंत्रण से ही जाते है यह उनका स्वाभिमान है। यही उनके पद और मुद्रा की गरिमा है।
विचार कीजिये…
जो लोग बिना आमंत्रण के साधु (पिच्छीधारी) को आने के लिए बाध्य करते है वे उनकी साक्षात अवज्ञा करते है। वे उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाते है। सरल साधु साधरणतया बिना निमंत्रण के चले भी जाते है और लोग अपने “अहं” को पुष्ट करते देखे जाते है।
जैसे –
2. साधुओं से मुजोरी करना, सामने बोलना, मजाक आदि करना – कुछ लोग साधुओं से गृहस्थियों जैसा व्यवहार करते है और यदि वह मुँह लग गया हो तो फिर दोस्त जैसा मजाक आदि करने लग जाते है..
अब देखिए…
साधु परमेष्ठी है, रत्नत्रय के साधक है, उनके पद की बहुत गरिमा है। वे वंदनीय है। वे त्रिलोक पूज्य व्रतों के धारक है।
विचार कीजिये…
जब मजाक, मुँह बोला-बोली होती है तो हीन शब्दों का प्रयोग उच्च व्यक्ति के सामने करने लग जाते है। ब्रह्मचारी साधक के सामने अब्रह्म के चुटकुले कहे जाते है।
इसलिए साधु के सामने या पीछे उनके पद के योग्य शब्दावली का प्रयोग होना चाहिए। उनके साथ सम्मानीय व्यवहार होना चाहिए। उनसे उतना ही बोलना चाहिए जितना आवश्यक हो।
जैसे –
3. गांव में साधु के लिए एक ही चौका लगाना – कुछ लोग “केवल पेट भरना है बस” यह सोचकर साधु के लिए केवल एक ही चौका लगाते है।
अब देखिए..
पिच्छीधारी त्यागी नवदा भक्ति से आहार लेते है। वे अपनी शक्ति आदि का परीक्षण करके विशेष विधी लेकर निकलते है और विधी मिलने पर ही उस चौके में आहार ग्रहण करते है। यह चर्या है उनकी।
विचार कीजिये…
जब एक ही चौका होगा तो साधु अपनी विधी, चौका आदि का निर्णय कैसे करेगा..? उनका चौका तय हो गया। उनको मजबूरी में उसी चौके में आहार लेना पड़ेगा और यदि वह चौका किसी दोष से दूषित हुआ तो साधु का उपवास… no Option।
इसलिए… साधु की चर्या निर्दोष और उनका स्वाभिमान सुरक्षित रखने के लिए एक साधु भी हो तो कम से कम दो चौके लगना चाहिए।
जब भी साधु को अपने पद से विपरीत या हीन कार्य करना पड़े तो समझना उनका स्वाभिमान प्रभावित हो रहा है।
हम अपना कर्त्तव्य निभाएं, इस तरह उनकी सेवा करें जिससे वे सम्मान के साथ स्वाभिमान पूर्वक साधना कर सकें.