स्फटिक मणि की चंदाप्रभु भगवान की अतिशयकारी प्रतिमा : दिन में कई बार अपना रंग बदलती है: लंकापति रावण इस प्रतिमा की पूजा करता था

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08 फरवरी 2023/ फाल्गुन कृष्ण तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद का नाम सुनते ही यहां की चूड़ियों और कांच के उत्पाद के चित्र सामने आते हैं, लेकिन ये जिला इनके अलावा भी एक खास पहचान रखता है। वो क्या है हम आपको बताते हैं। इस शहर में जैन धर्म के अष्टम तीर्थकंर भगवान चन्द्रप्रभु की ऐसी मनोहारी प्रतिमा विराजमान है जो पूरे विश्व में नहीं है। स्फटिकमणि की पद्मासन यह प्रतिमा अतिशयकारी है। मान्यता है कि तमाम अतिशय और चमत्कार इस जिन प्रतिमा से जुड़े हैं। चतुर्थकलानी इस प्रतिमा से कई किदवंती जुड़ीं हैं। इस भव्य प्रतिमा के इतिहास की बात करें तो ये प्रतिमा चतुर्थकालीन है। अब सवाल है फिरोजाबाद के जैन मंदिर में यह प्रतिमा कैसे आई।

ये है इतिहास
नगर से 7 किलोमीटर दूर यमुना के किनारे चंदरवाड़ नगर था। धन धान्य से परिपूर्ण इस नगर के राजा थे चन्द्रसेन। उनके महल में बने मंदिर में यह प्रतिमा थी। मुहम्मद गौरी ने जब इस राज्य पर आक्रमण किया तब राजा चन्द्रपाल ने इस प्रतिमा को यमुना में प्रवाहित कर दिया था। मुहम्मद गोरी ने इस नगर को तहस-नहस कर दिया था।

लंकापति रावण स्फटिक मणि की इस चंदाप्रभु भगवान की प्रतिमा की पूजा करता था..
फीरोजाबाद: सदर बाजार के निकट स्थित चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर का इतिहास काफी गौरवमयी है। इसमें विराजमान भगवान चंद्रप्रभु की स्फटिक (क्वा‌र्ट्ज) की अद्भुत प्रतिमा के दर्शन करने से पाप कर्मो का नाश हो जाता है। आज भी ये प्रतिमा दिन में कई बार अपना रंग बदलती है

कहते हैं लंकापति रावण इसी प्रतिमा की पूजा करता था ओर वहीं से इसे श्री राम अयोध्या लेकर आए थे
उसके बाद चंदवार के राजा इसको अपने यहां लेकर आए थे और मुगल काल में जब जैन मंदिर ओर प्रतिमा को खंडित किया जा रहा था तब राजा ने इस प्रतिमा को यमुना नदी में विसर्जित कर दिया था

इतिहास के अनुसार तीन सौ वर्ष पुराने मंदिर में स्थापित भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा से कई चमत्कार और किवदंतियां जुड़ी हैं। फीरोजाबाद बसने से पूर्व यमुना किनारे स्थित चंद्रवाड़ मुख्य शहर हुआ करता था। यहां के राजा चंद्रसेन जैन धर्म के अनुयायी थे। 14वीं सदी में मुगल शासक मुहम्मद गौरी की सेना ने जब चंद्रवाड़ पर हमला करते हुए मंदिरों को तहस-नहस करना शुरू कर दिया था तो राजा ने भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा बचाने के लिए यमुना में प्रवाहित करा दी थी। कई साल बाद एक माली को स्वप्न आया कि यमुना में भगवान चंद्रप्रभु की प्रतिमा है। उसने समाज को जानकारी दी, इसके बाद सब पहुंचे। नदी में प्रतिमा खोजना आसान नहीं था। अगली बार स्वप्न आया कि नदी में फूल डालो, अपने आप पता चल जाएगा। उसने टोकरी भर पुष्प यमुना के जल में छोड़ दिए। पुष्प एक स्थान पर ठहर गए और उतनी जगह पानी घट गया। इसके बाद नदी से यह प्रतिमा निकालकर मंदिर में स्थापित कराई गई।

सैकड़ों वर्षों बाद एक बुढी माँई को एक स्वप्न आया कि हम यमुना में है हमें बाहर निकालो
बुढी माई ने बोला भगवान इतनी बड़ी यमुना है भादो का महीना है यमुना में सिर्फ पानी ही पानी है हम आपको कहाँ ढूंढेंगे.! तो जबाव आया कि एक फूलों से भरी टोकरी नदी में छोड़ीये और जहाँ वो टोकरी रूक जाये बस वही हम हैं ,इस तरह श्रीजी की इस प्रतिमा के रूप में यमुना नदी से प्रकट हुए