कैसे आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी के पास से मौत आकर गुजर गई? कैसे बिजली कड़कती और उनका बाल बांका भी नहीं कर पाई?

0
949

28 जनवरी 2023/ माघ शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /शरद जैन
लगभग 9 बजे ऊपर महापारणा की शुरुआत हुई और 10 बजे फिर, अंतर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी को पालकी में लाने के लिए, एक जबरदस्त कशमकश चल रही थी। आदिवासी भाई आचार्य श्री को पालकी में लाने के लिए आतुर थे , घंटों से इंतजार कर रहे थे। वही हजार किलोमीटर दूर से आए जैन भाई, उनसे अनुग्रह कर रहे थे, कि भाई इतनी दूर से आए हैं यह सौभाग्य हमको दो । बस दोनों में एक मीठी-मीठी नोकझोंक हो रही थी कि ऐसा सौभाग्य हम क्यों नहीं ले। गदगद थे । आंखें सबकी नम थी। हर कोई जैसे ही मौका मिलता, पालकी को उठाने का मौका नहीं छोड़ता ।

आज वे नेता गायब थे ,जो अब तक यहां पर अपनी वोटों की रोटियां सेकने में मग्न थे । आज भाई भाई को लड़ाने वाली शक्तियां बेदम हो चुकी थी और सौहार्द के जल में उनकी अग्नि भी आज शीतल पड़ गई थी। लगभग 1:00 बजे आचार्य श्री की पालकी तलहटी पर आई, तो लोगों के सिरों से जैसे सड़के पट गई थी। हजारों की भीड़, मोक्ष सप्तमी से भी लगभग ज्यादा, आज शिखरजी को जैसे एक महामहोत्सव का रूप देने के लिए चरितार्थ कर चुकी थी। बनाया गया विशाल पंडाल 20,000 से भी ज्यादा जैन बंधुओं से छोटा पड़ने लगा था।

लगभग 2:20 पर एक भजन गीत महासागर की शुरुआत हुई। 5 मिनट बाद घोषणा हुई आचार्य श्री 557 दिन की दीर्घकालीन मौन साधना के बाद अब अपने प्रवचन से सब को लाभान्वित करेंगे । शंखनाद हुआ, घंटों की ध्वनि, जंगली पशुओं की आवाजें, हाथी की चिंघाड़, चिड़िया की चू चू , कोयल की कू कू, मोर की आवाज, बादलों का गर्जना, फूलों का खिलना, सूरज का चमकना ,अंधेरे को चीरती रोशनी और दो माइकों के बीच शांति सौम्य मुद्रा आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी की।
2.35 पर सब शांत हो गया। फिर आवाज आचार्य श्री की होठों से निकलने को जैसे व्याकुल होती गई, 557 दिन से जीभ होठों की बनी दीवार को जैसे चीरने की कोशिश में आज गले से निकलने को आतुर थी और शुरुआत की मंगल पाठ णमोकार मंत्र से। उस शांत वातावरण में उसने पूरे पंडाल को अभिमंत्रित कर दिया।

तब आचार्य श्री ने गुरुवर को प्रणाम किया और सब ने खड़े होकर, आचार्य श्री को प्रणाम किया । गीत गुंजायमान हो गया आयो रे शुभ दिन आयो रे ।फिर उसके बाद अहिंसा परमो धर्म की जय के साथ सभी तीर्थंकरों व आचार्यों के जयकारे के बाद गुरुवर के जयकारो ने पंडाल को गुंजायमान कर दिया। आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी ने अपने इन 557 दिनों के अनुभवों को अपनी स्मरण शक्ति से, बाहर निकालते हुए बताया कि आचार्य पदम नंदी जी महाराज की वह पंक्ति जिसने उन्हें इस दीर्घकालीन महाव्रत के लिए प्रेरित किया , वह थी आत्मा मरता ही नहीं है तो डर किस बात का और फिर इतना बड़ा पर्वत , हवा , और हमारी परछाई के अलावा कुछ नहीं था ऊपर।

हां, विश्वास नहीं होगा आज। जैन पावन अनादि निधन तीर्थ, श्री सम्मेद शिखरजी पर आज जो हुआ, शायद आज तक के निकट इतिहास में कभी नहीं हुआ होगा। पारणा को व्यापार नहीं बनाने दूंगा, आज धर्म अच्छा खासा व्यापार बनने लग गया है, भक्ति मंदिरों में सिमट कर रह गई है और धन से तिजोरिया भरने में लगा है हर कोई । ये शब्द अपने प्रवचनों में कहने वाले , आचार्य श्री प्रसन्न सागर जी ने इसको आज चरितार्थ तब कर दिया, जब हर कोई उनके महापारणा के लिए नीचे तलहटी में इंतजार कर रहे थे, तब स्वर्ण भद्र कूट पर चंद सौभाग्यशाली उनका 557 दिन की अनवरत साधना के बाद महापारणा करवा रहे थे।

आचार्य श्री ने संबोधन की शुरुआत एक कहानी से की, संत और राजा की। जिसमें आशय था कि लोभ के सामने , आज इंसान कुछ नहीं देखता। धर्म अकेला है, जो साथ जाता है और दुखों में कोई साथ नहीं देता ।अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि तीन-चार उपवास के बाद ही उन्हें उल्टियां हुई , मल विसर्जन में तकलीफ होने लगी। तब आचार्य श्री संभव सागर जी को मैंने संदेशा भेजा, तो उन्होंने आर्यिका चैतन्यमति माताजी के साथ ,एक लौंग मंत्रित करके मेरे पास में हर पारणा में भेजनी शुरू कर दी। और तब से आज तक मुझे, कोई दिक्कत नहीं हुई।

उन्होंने बताया कि 8 माह हो गए थे, उपवास करते करते , मैंने सिद्धवरकुट में आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज के सामने संकल्प ले लिया था कि ना एसी कूलर आदि सभी का त्याग कर रहा हूं और मुझे गर्मी बहुत लगती है, तभी पता नहीं कहां से एक तरंग उठी और उसने संकेत दिया कि तुम्हें जब नीचे कुछ ना लेना है, ना देना है तो यहां क्या करते हो। ऊपर स्वर्णभद्र कूट पर जाकर तप त्याग की तपस्या करो और फिर सभी के सहयोग से मैं ऊपर तप करने लगा। उन्होंने कहा कि उपवास हम नहीं करते, गुरुवर करवाते हैं । शरीर जरूर हमारा है ,धड़कन गुरु की थी , रूप हमारा था पर स्वरूप उनका था और आज आचार्य श्री सन्मति सागर जी का 85 वा जन्म दिवस भी है।

आचार्य श्री ने एक गंभीर अनुभव बताया 26 जून का। उन्होंने कहा कि उस दिन बहुत तेज धूप पड़ रही थी। पाटा बिछाकर संकल्प लेकर 2 घंटे के लिए ध्यान में मगन हो गए थे। तभी अचानक आंधी चली, तूफान चला, बारिश हुई और नींबू के आकार के लगातार ओले गिरने लगे। हम बेहोश हो गए और उस दिन का अजीब संयोग था कि कोई भी साथ नहीं था । तभी दो बच्चे सत्येंद्र और ईशान वहां आए और एक गार्ड भागीरथ, तीनों ने हमें उठाकर अंदर ले गए । आधे घंटे में तो फिर वहां पर भीड़ लग गई ।आकाश एक डॉक्टर को लेकर आया, जिन्होंने बीपी चेक किया ऊपर 60 नीचे 20, पल्स 50 थी और सांस 72 थी और तभी डॉक्टर ने कहा, तुरंत नीचे ले जाना होगा, स्थिति ठीक नहीं है , गंभीर है। डोली लेकर आओ , नीचे जाने के लिए। वहां उनका कंपाउंडर भी मौजूद था और उसने कहा मैं एक सुई लगाकर कोशिश करता हूं। वह सुई की ऐसी आवाज, हमारे कानों में लटक गई , उसने हमारे कानों के जैसे पर्दों को फाड़ना शुरू कर दिया।

मौन होते हुए भी हमारा संकेत उठा, हम उस बेहोशी से मानो उठ गए। इशारा करते-करते हमने बता दिया कि हम यहां इतनी तप त्याग कर रहे हैं और तुम सुई की बात कर रहे हो। बस जैसे हम मौत के मुंह से वापस आ गए।

आचार्य श्री ने बताया कि पारणा को हम व्यापार कभी नहीं बनने देंगे । आज धर्म अच्छा खासा व्यापार बन गया है। आज भक्ति मंदिरों तक सिमट गई है, और धन से तिजोरिया भरी जा रही हैं। उन्होंने बताया कि मैंने नीचे गुरुजी से संकल्प लिया था कि 61 ग्रंथ पडेंगे और मैंने वह संकल्प ऊपर पूरा भी किया। मैं रात में नहीं सोता था । आप सोचेंगे क्या करता था । जी हां स्वाध्याय करता था टॉर्च की रोशनी से, हां, विश्राम भी करता था तब, जब आप लोग वहां पर वंदना करने आते, यानी सुबह 6:00 से 11:00 तक मैं विश्राम करता ।

उन्होंने कहा हम हैं, हम हैं, एटम बम है और आज लोग तुम्हें नहीं , इस बिन कपड़े वाले को देखने और सुनने आए हैं। उन्होंने कई बातें की अपने अनुभव की, जो चैनल महालक्ष्मी आपको समय-समय पर अवगत कराता रहेगा। धन्य है ऐसे गुरुवर जिन्होंने तपस्या की पराकाष्ठा को आज पूरा कर कर दिखा दिया।