अपने नाम को सार्थक करते हुए श्रेयो अर्थात् मोक्ष का मार्ग बतलाया ही नहीं, उस पर चलकर सबको वही मिसाल पेश की -11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथजी का ज्ञान कल्याणक

0
430

20 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
तीर्थंकर शीतलनाथ जी को मोक्ष गये 101 सागर में 66 लाख 26 हजार वर्ष कम, बीत जाने के बाद सिंहपुर नगर में जन्म हुआ था, श्रेयांसनाथ जी का। श्रेयांसनाथ जी ने अपने नाम को सार्थक करते हुए श्रेयो अर्थात् मोक्ष का मार्ग बतलाया ही नहीं, उस पर चलकर सबको वही मिसाल पेश की, जो उनसे पहले 10 तीर्थंकरों ने पेश की थी।

42 लाख वर्ष हो गये थे राजपाट करते, फिर एक दिन बसंत लक्ष्मी का नाश देखा, तो जैसे भीतर से वह ज्योत चमक गई, जिसकी रोशनी में यह संसारी चकाचौंध फीकी पड़ गई। मनोहर वन में दीक्षा ले दो वर्ष कठोर तप किया और फिर वह दिन आ गया माघ अमवास ((इस वर्ष 21 जनवरी को है), तेंदुवृक्ष के नीचे श्रवण नक्षत्र में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।

स्वर्ग में इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हुआ, संकेत समझ गया। सिंहासन से उतर सात कदम बढ़ साष्टांग प्रणाम किया और कुबेर को तत्काल समोशरण रचने का निर्देश दिया। 84 किमी विस्तार का विशाल रत्नमयी समोशरण बनाने में ज्यादा देर नहीं लगाई।

धर्म नाम के प्रमुख गणधर के साथ 70 गणधर, 1300 पूर्वधर मुनि, 48,200 शिक्षक मुनि, 6000 अवधि ज्ञानी मुनि, 6,500 केवली, 11,000 विक्रिया धारी मुनि, 6000 विपुलमति ज्ञानधारी मुनि, 5,000 वादी मुनि, चारणा प्रमुख के साथ समोशरण में बैठ कर दिव्य ध्वनि का लाभ लेते थे। आपका केवली काल 20 लाख 99 हजार 998 वर्ष का था।

बोलिए 11वें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी के ज्ञान कल्याणक की जय-जय-जय।