3 दिन, 3 तीर्थंकर और 4 कल्याणक, बैक टू बैक- माघ माह में हो रहा ऐसा पहली बार

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18 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण एकादशी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
माघ माह में ऐसा पहली बार हो रहा है कि लगातार तीन दिन, 3 तीर्थंकरों के अलग-अलग चार कल्याणक आ रहे हैं । इस वर्ष इसका कारण भी है, क्योंकि इस बार त्रयोदशी का क्षय होते हुए, चतुर्दशी आ रही है। इसी कारण लगातार तीन दिन 3 तीर्थंकरों के चार कल्याणक आ रहे हैं।

माघ कृष्ण द्वादशी – सौ सागर बाद फिर जन्म हुआ तीर्थंकर का, इस बार भद्रिलपुर में
9वें तीर्थंकर श्री पुष्पदंत जी को मोक्ष गये सौ सागर का समय बीत चुका था और दसवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी के आने की शुभ सूचना मिल चुकी थी, क्योंकि भद्रिलपुर में महाराजा दृणरथ जी के राजमहल पर 15 माह से सुबह-दोपहर-शाम स्वर्ग से साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा लगातार हो रही थी। और अब वह दिन आ भी गया। माघ कृष्ण द्वादशी (इस वर्ष 19 जनवरी को है), पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में महारानी सुनंदा देवी के गर्भ से आपका इधर जन्म हुआ, उधर स्वर्ग सौधर्मेन्द्र, शची के साथ स्वर्ग से धरा पर आ पहुंचा मेरु पर्वत की पाण्डुकशिला पर जन्माभिषेक के लिए।

आपकी आयु एक लाख पूर्व वर्ष थी, तपे सोने जैसा रंग, 540 फुट ऊंचा कद। 25 हजार पूर्व वर्ष का कुमार काल और फिर 25 हजार पूर्व वर्ष राजपाट संभाला। फिर एक दिन हिम का नाश देखकर इसी माघ कृष्ण द्वादशी को मन में वैराग्य की भावना बलवती हो गई। बस शुक्रप्रभा पालकी से सहेतुक वन पहुंचे, उनके तप की ओर बढ़ते कदमों को देख एक हजार और राजाओं ने दीक्षा ली।
बोलिये 10वें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी के जन्म-तप कल्याणक की जय-जय-जय।

इस वर्ष का पहला मोक्ष कल्याणक 88 दिन बाद

जी हां, वीर संवत 2549 का पहला मोक्ष कल्याणक आ रहा है प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी का, माघ कृष्ण चतुर्दशी को ,जो इस वर्ष 20 जनवरी को है। यानी शीत ऋतु में किसी भी तीर्थंकर को मोक्ष नहीं हुआ, यह अजीब संयोग है। कार्तिक शुक्ल पक्ष में, फिर मार्गशीर्ष और पौष मास में कोई तीर्थंकर मोक्ष नहीं गए। हुंडा अवसर्पिणी काल के कारण, तीसरे काल में ही हमारे प्रथम तीर्थंकर कैलाश पर्वत से 10,000 महामुनिराजों के साथ मोक्ष गए। आपका कद 3000 फुट और आयु 84 लाख वर्ष पूर्व थी।
बोलिए प्रथम तीर्थंकर श्री आदिनाथ जी के मोक्ष कल्याणक की जय-जय-जय।

अपने नाम को सार्थक करते हुए श्रेयो अर्थात् मोक्ष का मार्ग बतलाया ही नहीं, उस पर चलकर सबको वही मिसाल पेश की -11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथजी का ज्ञान कल्याणक

तीर्थंकर शीतलनाथ जी को मोक्ष गये 101 सागर में 66 लाख 26 हजार वर्ष कम, बीत जाने के बाद सिंहपुर नगर में जन्म हुआ था, श्रेयांसनाथ जी का। श्रेयांसनाथ जी ने अपने नाम को सार्थक करते हुए श्रेयो अर्थात् मोक्ष का मार्ग बतलाया ही नहीं, उस पर चलकर सबको वही मिसाल पेश की, जो उनसे पहले 10 तीर्थंकरों ने पेश की थी।

42 लाख वर्ष हो गये थे राजपाट करते, फिर एक दिन बसंत लक्ष्मी का नाश देखा, तो जैसे भीतर से वह ज्योत चमक गई, जिसकी रोशनी में यह संसारी चकाचौंध फीकी पड़ गई। मनोहर वन में दीक्षा ले दो वर्ष कठोर तप किया और फिर वह दिन आ गया माघ अमवास ((इस वर्ष 21 जनवरी को है), तेंदुवृक्ष के नीचे श्रवण नक्षत्र में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई।
स्वर्ग में इन्द्र का सिंहासन कम्पायमान हुआ, संकेत समझ गया। सिंहासन से उतर सात कदम बढ़ साष्टांग प्रणाम किया और कुबेर को तत्काल समोशरण रचने का निर्देश दिया। 84 किमी विस्तार का विशाल रत्नमयी समोशरण बनाने में ज्यादा देर नहीं लगाई।

धर्म नाम के प्रमुख गणधर के साथ 70 गणधर, 1300 पूर्वधर मुनि, 48,200 शिक्षक मुनि, 6000 अवधि ज्ञानी मुनि, 6,500 केवली, 11,000 विक्रिया धारी मुनि, 6000 विपुलमति ज्ञानधारी मुनि, 5,000 वादी मुनि, चारणा प्रमुख के साथ समोशरण में बैठ कर दिव्य ध्वनि का लाभ लेते थे। आपका केवली काल 20 लाख 99 हजार 998 वर्ष का था।
बोलिए 11वें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी के ज्ञान कल्याणक की जय-जय-जय।