जैन इतिहास में संभवत: पहली बार , #कचनेर के पारस बाबा से क्षमा भाव के लिए चले हजारों प्रायश्चित पदयात्रा में

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12 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण पंचमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
शायद ऐसा कोई इतिहास नहीं मिलता, कि जहां ऐसा उल्लेख हो कि जैन समाज के हजारों लोग अपनी गलतियों की क्षमा मांगने के लिए, अतिशयकारी जिन प्रतिमा के सम्मुख पहुंचने के लिए, कोई प्रायश्चित पदयात्रा की हो। पर अब कचनेर के अतिशयकारी पारस प्रभु से हजारों लोगों ने प्रायश्चित पदयात्रा में भाग लेकर विनती की। जिसके पीछे उनका मानना है कि समाज से, किसी भी रूप में बहुत गलतियां हुई और उनके लिए, अगर क्षमा भाव भीतर से उठे तो निश्चित ही प्रायश्चित होगा और जहां कहा जाता है कि कचनेर के बाबा का अतिशय कम हो रहा है, शायद वह फिर उसी अतिशयकारी रूप को प्रदान कर सकेंगे।

प्रायश्चित पदयात्रा , रविवार 8 जनवरी को, सुबह 9:00 बजे शुरू हुई और 5000 के लगभग लोगों ने भाग लिया। 12:00 बजे के लगभग, यह पदयात्रा कचनेर अतिशयकारी तीर्थ पर पहुंची, जहां पर 1008 दीपको से आरती की गई। इसका आयोजन किसी मंदिर कमेटी , ट्रस्टी द्वारा नहीं किया गया और वह पदयात्रा में भाग लेने भी नहीं आए।

हां, इतना जरूर था कि तीन-चार ट्रस्टी पदयात्रा के मंदिर पहुंचने पर वहां मौजूद थे। इसका आयोजन 8 युवाओं ने किया।

प्रायश्चित्त पद यात्रा क्या है? अबतक लगभग सभी के विचार में यह विषय आगया होगा कि प्रायश्चित्त पद यात्रा का प्रयोजन क्या?

प्रयोजन इसलिए की निःसंदेह, हमसे गलती हुई है। हमने उस गलती को स्वीकार भी किया। और उसके लिये हम प्रायश्चित्त लेने के लिए तैयार भी हुए। क्योंकि हमें कही ना कही ये एहसास हुआ है कि हम दोषी है, और इसी कारण हम बाबा के दरबार मे प्रायश्चित्त करने आये है।

पर क्या सचमुच् इस यात्रा से हमारे पाप धुल जाएंगे? बाबा हमे माफ कर देंगे?
क्या यही तक सीमित है हमारी भक्ति?
हम इस से पूर्व में भी बाबा की मूलनायक मूर्ति अभिषेक के समय खंडित हुई थी?
सूरी मंत्र देकर फिर बाबा की प्राण प्रतिष्ठा करवाइ।
क्या हुआ था तब, क्यो किसीने प्रायश्चित्त नही किया?
क्या वह वाक्या अधिक गंभीर नही था? सोचनीय है!!
कहते है बाबा की और एक छोटी सुवर्णमयी प्रतिमा भी चोरी हुई है?
कितना तथ्य है इस बात में नही पता, किन्तु फिर अचानक आज इतने दिनों बाद यह बात पता चलती है, पूर्व में क्यो ज्ञात नई हुई?

ये हम सभी की कमजोरी माननी चाहिए।

क्या ऐसी ही अनेक घटनाये है, जो हमें ज्ञात नही है, ऐसी घटनाएं क्या आम हो गई है?
या इस का कोई महत्व नही है? किसी व्यक्ति विशेष या किसी मैनेजमेंट को दोष नही दे रहा, शत प्रतिशत नही, कोई भी जानबूझकर बाबा की सेवा में प्रमाद नही करेगा?

किन्तु फिर सवाल खड़ा होता है? गलती तो हुई है!! कब और किससे ये विषय गौण है, हम सब बराबर के दोषी है।
प्रत्येक भक्त, प्रत्येक सदस्य, हर जैन व्यक्ति, कार्यकारिणी, मैनेजमेंट, कर्मचारी इत्यादि सभी को दोष के पात्र मानना चाहिए।
अगर कोई केवल मैनेजमेंट को ही इस का कसूरवार मानता है, तो मैनेजमेंट को हमने ही नियुक्त किया है।
वह सेवा भाव उनमे अधिक है।

गलती तो हुई है!!गलती इस बात की, की शायद इस वाकया को समय पर भाप लेते तो शायद बाबा, फिर से मिल जाते।
मूर्ति चोरी के पश्चात लगभग 10 दिन के पश्चात ये बात आम जनता को पता चली?
तो क्या 10 दिन तक यह बात किसी को ज्ञात नही हुई?
किसी को भी नही, पुजारी, कर्मचारी,सिक्योरिटी, दर्शनार्थी, इत्यादि,?? ऐसा होना असंभव है!!
मूर्ति बदल जाती है और 10 दिन तक किसी को भी पता नही चलता यह बहोत ही असंभव बात है?

मूर्ति चोरी हुई? ठीक है, किन्तु उस के बाद क्या?
क्या हम स्वयं, शक होते ही, CC TV फुटेज चेक नही कर सकते थे?
वह सबसे ज्यादा दोषी माना जायेगा, यदि पता होते हुए भी इस विषय को छुपाने की कोशिश की हो।
क्यों इस बात को 10 दिन तक छुपाने की कोशिश की, यदि ऐसा ना होता तो निस्संदेह ही आज बाबा अखंड रूप में हमारे सामने होते

गलती तो हुई है!! गलती इस बात की, के पहले ही प्रायश्चित्त कर लेते तो यह दिन देखने को नही मिलता।
क्या हम कही गुमराह हो रहे है? हम कल भी गुमराह थे, आज भी है, और क्या आगे भी ऐसे ही गुमराह होते रहेंगे??

सचमुच प्रायश्चित्त के लिए यात्रा अवश्य ही मंगलकारी होगी। किन्तु जिसप्रकार इस प्रायश्चित्त पैद यात्रा का नियोजन हुआ है, ऐसा लगता है, की कोई संतुष्ट है और कोई नाराज, और इसी कारण कही ना कही, भक्तो को लगता है कि इसमें भी राजनीति चल रही है। और यदि ऐसा नही है, और सचमुच् अंतरंग से प्रायश्चित्त करना चाहते हो तो पहले हमे बाबा की सेवा करना चाहिए। यात्रा तो अच्छी बात है किंतु कभी सेवा भी कर लेंगे। कभी कचनेरजी में सफाई ही कर लिया करेंगे। जो आस्था दृढ़ करने में कारण बनेंगी।
प्रायश्चित्त ही करना है तो आवो करो प्रतिज्ञा की-

– हर पूनम को बाबा के दरबार मे नियम से आएंगे, भक्ति करेंगे, पूजन करेंगे
– पवित्र बनकर आएंगे, जैन बनकर आएंगे, मद्य, मास, मधु का सेवन नही करेंगे , तभी प्रायश्चित्त पूरा होगा
– केवल बाबा के लिए आएंगे, कोई राजनीति, पॉलिटिक्स, ऊच नीच नही करेंगे।
– निर्माल्य का त्याग करेंगे, दान करेंगे, कोई लांछन नही लगने देंगे।


सबसे महत्वपूर्ण, बाबा की सेवा करने के लिए किसी भी पद या प्रतिष्ठा की आवश्यकता नही है, बाबा की सेवा तो भक्त बनकर की जाती है।और जो भी पद पर रेहना चाहते है, तो रात्रि भोजन का नियम ना ले सके तो मद्य, मास, और मधु का तो नियम ले ही सकते है।