श्री सम्मेद शिखरजी को लेकर जोहार और जय जिनेन्द्र के बीच इबादत…, मैं पारसनाथ के उस निजाम को जानता हूं जो,

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11 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
मैं पारसनाथ के उस निजाम (एक डोली मजदूर है) को जानता हूं जो, हर शुक्रवार पीरटांड़ की मस्जिद में नमाज अता करता है और अपने रसूल से पूरे प्रखंड की सुख, शांति और समृद्धि की कामना करता है…।

पारसनाथ को टीनोपाल से धोने की मांग चल रही तो निज़ाम की जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि वह एकमात्र मुस्लिम डोली मजदूर है जिसे मैंने 15 साल की उम्र से अपने कंधे पर तीर्थयात्रियों को श्री सम्मेद शिखरजी की यात्रा कराते देखा है। आज वह करीब 65 वर्ष का है, शराब का सेवन करते हुए मैने उसे देखा नहीं, हो सकता है कि वाह इस्लाम की आयतों का पालन करता हो..!

जोहार और जय जिनेन्द्र की ज़बान बोलने वाले और शिखरजी व मरांग बुरू पर टीनोपाल की राजनीति करने वालों को निजाम से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है। निजाम हर शाम मधुबन आता है और पारसनाथ की जयकार से पहाड़ की यात्रा करने वाले यात्रियों से पूछता है कि बाबू, यात्रा पर जायेंगे क्या..?, हम निजाम हैं, आपको चंदप्रभु और पारसनाथ की टौंक पर उपर तक ले जायेंगे..! कोई तकलीफ नहीं होगा..! वह हर रोज यात्रियों की उम्र, ऊंचाई और शरीर देख कर उनका वजन बता देता है और निर्धारित मजदूरी की जानकारी देता है…! तीन महीने पहले उससे पारसनाथ भगवान की टौंक पर मुलाकात हुई तो पूछ बैठा… की हाल पिंकू बाबू…? कहां रेहो हीं.. मैंने कहा- रांची….! उसने कहा- बुतरू सब कइसन हो?… सब ठीक हो… !

निजाम की बात इसलिये कर रहा हूं कि श्री सम्मेद शिखरजी को लेकर जोहार और जय जिनेन्द्र के बीच इबादत…, इकरार…,और अब नए तेवर का टकराव है ! श्री सम्मेद शिखरजी को लेकर केंद्र के आदेश के बाद स्थानीय आदिवासी समाज का हल्लाबोल…! असहिष्णु और सहिष्णु की सूक्तियों के कथानक व्याकरण को समझने को तैयार नहीं हैं तो मान लीजिए कि शिखरजी की फिजां को नजर लगने वाली है..! अगर आप मानते हैं घुटना पेट की ओर मुड़ता है तो पीठ की ओर जबरन मोड़िए मत..! अन्यथा संस्कार जो परंपरागत हैं, विधाएं जो अनवरत हैं उनमें सेंधमारी आरंभ हो जायेगी! सेंधमारी बेशक सियासी हो, लेकिन दुष्प्रभाव जैन समाज और स्थानीय समाज पर व्यापक तौर पर होगा..! मौजूदा हालात चीख कर ये बता रहे हैं कि जो कभी मरांग बुरु की पूजा करने पारसनाथ नहीं गए, वो वोट बैंक को दुरुस्त करने पवित्र स्थान को सियासी बनाने पर तुले हैं!

नफा नुकसान का आकलन भविष्य में होगा लेकिन वर्तमान को सुरक्षित करना हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए। वाट्सअप यूनिवर्सिटी से निकलती सम्मेद शिखरजी की व्याख्याएं और शोर-शराबे में स्थानीय लोगों के बीच आशंकाएं अगर गहराती हैं तो यह समझ लीजिये कि सामाजिक समरसता को बिगाड़ने में दोनों पक्षों की भूमिका संदिग्ध होगी..! गंभीर बात यह है कि श्री सम्मेद शिखरजी को लेकर सबके पास अपने-अपने टिनोपाल हैं जो पवित्रता की पुंगी बजाने में लगे हैं। पूरे देश में जैन समाज का आक्रोश उबाल पर है तो पूरे राज्य में आदिवासियों की आहत भावनाओं पर राजनीति का टिनोपाल लगाकर कई अपनी सियासत के सिक्के को खरा करने को बेताब हैं। नेताओं की भीड़ में ऐसे भी हैं जो कभी पारसनाथ के मरांग बुरू जाहेरथान में कभी अपना मत्था टेकने नहीं गये तो जैन समुदाय में भी ऐसे हैं जो तीर्थ पर जाकर जैन धर्म को सीमाओं में बांध कर अपने पराये का फर्क समझा रहे हैं। मेरी नाराजगी उन सबसे हैं जो शिखरजी के अमन चैन को छीनने को बेताब हैं।

निजाम का जिक्र इसलिए जरूरी है की वाह पांच दशक से बिना किसी राजनीति का हिस्सा बने पारसनाथ के जयकारों से हौसला पाता है और अपने रसूल के बताए मार्ग पर सर्वधर्म समभाव की सूक्तियों के अनुरूप चल रहा है। इसलिए निजाम आपके लिए प्रेरक हो सकता है..

– पंकज जैन , पत्रकार