लड़ाई पर्वतराज की पवित्रता को पवित्र रखने की है ना कि स्थानीय निवासियों से, व्यर्थ के विवाद से बचें।,व्यर्थ के लिखने से बचें

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9 जनवरी 2022/ माघ कृष्ण तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /

रात के गहरे अंधेरे में 2:00 या 2:30 बजे के लगभग अपने परिवार की महिलाओं और बच्चों के साथ घर से बाहर निकल कर थोड़ी दूर तक ही जाने की कोशिश कीजिए, यकीन मानिए हवा खराब हो जाएगी। अपने ही मोहल्ले की गलियां सड़के और मकान भुतहा और डरावने नजर आने लगेंगे। अगर सफर दो-चार किलोमीटर का हो तो फिर निश्चित रूप से सफर किया ही नहीं जाएगा।

वहीं दूसरी तरफ सुनसान रात में रात के 2 या 2:30 बजे अपने परिवार की स्त्री और बच्चों के साथ आप जंगल में एक छोटी सी टॉर्च के सहारे पगडंडियों पर पर्वतराज की यात्रा के लिए निर्भय होकर निकल पड़ते हो।
कहीं कोई डर नहीं, ना पगडंडीयां डरावनी लगती हैं, ना पेड़ डरावने लगते हैं। ना ही यह लगता है कि जंगल से आकर कोई जंगली जानवर आप पर आक्रमण कर देगा, ना ही उस सुनसान बियाबान में किसी मनुष्य का डर होता है ना किसी लुटेरे का। परिवार के सदस्य भी आगे पीछे हो जाते हैं। सब अनवरत चलते रहते हैं।

यह सब कुछ संपन्न हो पाता है, सिर्फ दो विश्वास के कारण!!
पहला जैन धर्म और पारसनाथ प्रभु में आस्था और अटूट विश्वास की पर्वतराज पर हमारा कुछ भी अनुचित नहीं हो सकता।
और दूसरा यह अटूट विश्वास कि इस पर्वत पर हमारे साथ कभी कोई अनहोनी स्थानीय निवासियों के द्वारा नहीं की जा सकती।

अगर यह दोनों विश्वास ना होते तो

यकीन मानिए इतने दुर्गम और कठिन यात्रा को कर पाना संभव ही ना हो पाता। दोनों ही विश्वास सत्य हैं। इस विश्वास को खत्म करने वाली बातों को खत्म करना होगा। हम तो वहां पर कुछ देर के यात्री है। यात्रा करते हैं और अपने अपने गंतव्य को चले जाते हैं। मूल रूप में तो हमारे जाने के बाद वहां की समस्त सुरक्षा की जिम्मेदारी का निर्वहन स्थानीय आदिवासी लोग ही करते हैं। वें और उनके पूर्वज आदि अनादि काल से बाबा को पूजते चले आ रहे हैं।

व्यर्थ के विवाद से बचें। व्यर्थ के लिखने से बचें।।

जो जरा सा शोरगुल होने या आहट होने पर भी अपने घर के दरवाजे से बाहर निकल कर सड़क पर नहीं आ सकते, वें मोबाइल पर उंगलियां चला कर रक्त की नदियां बहा देने की बात कर रहे है..