6 जनवरी 2022/ पौष शुक्ल पूर्णिमा /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /- शरद जैन –
हां यह जरूर है कि आने वाली जो कुछ लाईनें पढ़ेंगे, उससे आप में से कोई भी शायद सहमत ना हो , आंदोलन करने वाले या आंदोलन से बाहर रहने वाले , पर कलम के प्रति, जैन समाज के प्रति, अपना समर्पण दिखाते हुए, इस चिंतन को समाज के बीच में डालना चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी अपना परम कर्तव्य और जिम्मेदारी समझता है। इसलिए आने वाली कलम की स्याही में कुछ ऐसा ही कटु चिंतन दिया जा रहा है ।
दो संतों के बलिदान से, एक छोटे बच्चे के टोंक के ऊपर पोस्टर खड़े होने तक , सैकड़ों लोगों को पुलिस की पिटाई के बाद, सैकड़ों ही लोगों के जारी अनशन से लाखों की संख्या में रैली और ज्ञापन देने वाले समाज तक को, जो कल केंद्र सरकार ने दो पृष्ठों में लगभग 1000 शब्दों में निचोड़ कर जो थमा दिया, क्या वास्तव में जैन समाज वही चाहता था?
क्या संथारा में जिस तरह, जब समाज सड़क पर उतर कर आया था , तो अदालत ने एक मिनट में स्टे का आदेश जारी कर दिया था, उनकी उचित मांगों को देखते हुए, तो आज जब पुनः पूरा समाज, जिस आवाज को लेकर सड़कों पर आया था, अपने तीर्थ की सुरक्षा के लिए ,आगे बढ़ा था, क्या वह उसे मंजिल प्राप्त हो गई ?
एक बार चिंतन कीजिए, किसलिए समाज , सड़क पर आया था ?
क्या केवल ईकोटूरिज्म से हटाने के लिए ?
उसके लिए भी एक ऑफिस ऑर्डर जारी करने के लिए। सिर्फ इतना ही था या फिर निम्न बातों के लिए जो पत्र में लिखी गई:
पारसनाथ पर्वत पर इन गतिविधियों पर रहेगा प्रतिबंध
शराब, ड्रग्स और अन्य नशीले पदार्थों की बिक्री
तेज संगीत या लाउडस्पीकर बजाना
पालतू जानवरों के साथ आना
अनधिकृत कैम्पिंग और ट्रैकिंग
मांसाहारी खाद्य पदार्थों की बिक्री
इसके अलावा उन सारी एक्टिविटीजी पर रोक रहेगी, जिनसे जल स्रोत, पौधे, चट्टानों, गुफाओं और मंदिरों को नुकसान पहुंचता हो।
शुरू में तो राष्ट्रीय मीडिया ने नजर नहीं उठाई थी ,पर जब जैन समाज की गिनती सड़कों से पता चली, तो मीडिया के कैमरे और अखबारों की कलम भी इस ओर कैमरों को, खबरों के साथ संपादक के पन्नों में, जरूर नजर आई।
क्या उद्देश्य था? शायद जैन समाज का एक ही लक्ष्य था कि इस पर्यटन या धार्मिक पर्यटन के रूप से परिभाषित करने वाली सरकार, इसको पवित्र जैन तीर्थ क्षेत्र घोषित करें?
आप मानेंगे इस बात को। तो क्या घोषित हो गया, यह जैन पवित्र तीर्थ क्षेत्र? क्या बन गया यह जैनों का तीर्थ? या फिर वही पुरानी बातें पुनः एक नई तारीख में लिखकर, समाज को मिली है और हमारी सभी बड़ी कमेटियों की उपस्थिति में , जो यह महीनों से, जैन समाज का आंदोलन ,जो विशाल रूप ले चुका था, उसको पटाक्षेप करने के लिए इतना पर्याप्त था?
इस बार हमारी सभी बड़ी संस्थाओं ने मिलकर , इस को तय किया।
हां याद आ रहा है, किसान आंदोलन के समय भी, इस तरह से ही कृषि मंत्री के साथ लगातार बैठक हो रही थी। उसमें भी करोड़ों किसानों को प्रतिनिधित्व करते , 50- 60 प्रमुख लोग थे, जैसे आज जैनों को प्रतिनिधित्व करते, 35- 40 ।
हां एक बात और याद आ रही है कि उन्होंने किसी भी बात पर स्वीकृति नहीं दी, जिससे उनके आंदोलन में कमी होती। उन्होंने तो सरकारी लंच तक नहीं किया, बाहर बैठकर, अपना ही भोजन करते । यह शब्द आज इसलिए कहने पड़ रहे हैं, कि समाज आज नहीं तो, आने वाले वर्षों में जरूर पूछेगा कि जब हमारे बुजुर्गों ने आंदोलन के लिए कमर कसी थी, तो सरकारी मंत्रालय में बैठकर उस पर मांग रखते हुए , हमारे तीर्थ की सुरक्षा के लिए, क्या लेकर आए थे?
हां, ईकोटूरिज्म को हटाने के लिए एक सरकारी ऑफिस ऑर्डर तो जारी हुआ , अभी अधिसूचित नहीं हुआ ?
जब किसानों की मांगे सुनते हुए, सरकार एक झटके में वापसी का निर्णय दे देती है , तो यहां पर क्यों सरकार केंद्र की, सारी बातें राज्य सरकार के पाले में डाल देती है? प्रश्न तो यह भी उठता है, जब ओवररूल करने की बात होती है , तो क्यों केवल अपना ही बनाए गए गजट में से ईकोटूरिज्म शब्द को हटाने की बात कही जाती है ?
ना उसे तीर्थ क्षेत्र घोषित किया जाता है , ना ही राज्य सरकार के अंतरराष्ट्रीय पर्यटन से हटाने की बात कही जाती है?
क्या जैन समाज की समस्या हल हो गई ?
इस बारे में चिंतन कीजिए। चैनल महालक्ष्मी अपने निजी विचार, आज शुक्रवार, रात्रि 8:00 बजे अपने विशेष एपिसोड में आपके बीच रखेगा कि कल मिली, दो चिट्ठियों से, एक राज्य सरकार से केंद्र के नाम और दूसरी केंद्र की जैन समाज के लिए क्या वह पर्याप्त है?
जिसके लिए जैन समाज आंदोलित रहा।
विषय गंभीर है अपने धर्म के आयतनों की सुरक्षा के लिए, क्योंकि सबसे बड़े तीर्थ से ही, यह सरकारी लकीर की शुरुआत होती है । अगर आज हम चूक गए, तो बाकी सब तीर्थों के लिए भी, कुछ इसी तरीके से समझौते मिलेंगे। जिनसे जैन समाज को क्या मिलेगा? यह आप सभी को चिंतन करना होगा ।
आज शुक्रवार रात्रि 8:00 बजे के एपिसोड में चैनल महालक्ष्मी अपना जरूर, निजी चिंतन , आपके सामने रखेगा जरूरी नहीं है कि आप सभी सहमत हो , या कोई भी एक ही सहमत हो। केवल यह बताने के लिए कि आने वाली पीढ़ी , जब हम से पूछेगी कि हमारे बुजुर्गों ने जब ऐसे आंदोलन किए थे, तो उसके बाद सरकार से , हमने क्या, कैसा , क्यों समझौता किया?
देखिएगा और सुनिए गा जरूर , अगर अपने श्री सम्मेद शिखरजी के प्रति हमारी रगों में रक्त वाहिनी दौड़ती है। कहते तो हैं कि शिखर जी हमें प्राणों से प्यारा है , तो क्या दो पृष्ठ का पत्र , उसके प्राणों की सांसो के लिए इतना ही काफी है?
इस वर्ष 9 राज्य में होने वाले चुनावों और अगले वर्ष केंद्र के चुनाव को देखते हुए , जब जैन समाज का आंदोलन, अन्य धर्म संप्रदायों में भी जोश पकड़ने लगा, तो क्या ऐसे समय में सरकार द्वारा जैन समाज को झुनझुना तो नहीं समा थमा दिया?