महाराष्ट्र प्रान्त के यवतमाल जिले का एक शहर है दिग्रस कहा जाता है कि कई वर्षों पूर्व परमपूज्य बाल ब्रह्मचारी श्री नेमसागर जी महाराज अपने शिष्य के साथ यंहा पधारे थे, वो जिस जिनालय में रुके वह यंहा किसी की व्यक्तिगत मिल्कियत थी ऐंसा जान उन्होंने एक सामाजिक मंदिर बनाने का विचार किया और उसे कार्यरूप में परिणत भी किया
मंदिर निर्माण उपरांत यह समस्या आई की इस में किस तीर्थंकर को विराजमान किया जाये उसी रात नेमसागर जी को स्वस्प्न आया की समीप के ही ग्राम वरोली में एक अजैन के घर भगवान आदिनाथ जी की प्रतिमा है जो उसे अपने खेत से मिली है ऐंसा जान नेमसागर जी ने वह प्रतिमा लाकर यंहा स्थापित कराई जो की चतुर्थ कालीन, अतिशय युक्त, मनमोहक है जिसे यंहा के जैन अजैन सभी साक्षात् बाब जी प्रभु (आदिनाथ भगवान) के नाम से जानते हैं
यंहा पर चैत्र वदी नवमी तिथि को साक्षात् आदि प्रभु का जन्मोत्सव मनाया जाता है कालांतर में पूज्य नेमिसागर जी द्वारा उस दिन यंहा घी रोटी की पंगत ( भंडारा) कराया जाता था जिसके लिए 4 घड़े घी वरोली के अजैन(हिन्दू) के घर से आता था एक बार वक्त पर घी नही आया नेमसागर जी चिंतित हुए उन्होंने बाब जी भगवान(आदि प्रभु) का स्मरण किया और श्रावको से कहा जाओ कुंए से 4 घड़े पानी भर लाओ चमत्कार हो गया वह 4 घड़ा पानी घी में बदल गया सारा आयोजन सानंद सम्पन्न हुआ तब तक वरोली ग्राम से भी 4 घड़े घी आया जिसे नेमसागर जी ने कुंए में डालने बोला वह घी पानी में बदल गया यह आश्चर्य मौजूद सभी लोगो ने देखा ऐंसे अनेको अतिशय इस क्षेत्र पर होते रहते हैं वो 4 घड़े आज भी यंहा विद्यमान हैं
क्षेत्र दर्शन हेतु न केवल जैन अपितु अजैन भी अपनी मनोकामना लेकर यंहा आते हैं साक्षात् बाब जी प्रभु आदिनाथ का दर्शन कर खुद को धन्य करते है जीवन में जब् भी दक्षिण की वन्दना को जाएं एक बार इस अतिशयकारी भव्य जिनालय के दर्शन अवश्य करें