एक ओर अत्यंत निस्पृही, वीतरागी छवि तो दूसरी ओर मुख से निर्झरित होती अमृतध्वनि -आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज के तृतीय समाधि दिवस पर भावाजंलि

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15 नवंबर 2022/ मंगसिर कृष्ण सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
युग बीतते हैं, सृष्टियाँ बदलती हैं, दृष्टियों में भी परिवर्तन आता है꫰ कई युगदृष्टा जन्म लेते हैं꫰ अनेकों की सिर्फ स्मृतियाँ शेष रहती हैं, लेकिन कुछ व्यक्तित्व अपनी अमर गाथाओं को चिरस्थाई बना देते हैं,उन्ही महापुरुषों का जीवन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाता है, जो असंख्य जनमानस के जीवन को घने तिमिर से निकालकर उज्ज्वल प्रकाश से प्रकाशित कर देते हैं

ऐसे ही निरीह, निर्लिप्त, निरपेक्ष एवं स्वावलम्बी जीवन जीने वाले युगपुरुषों की सर्वोच्च श्रेणी में नाम आता है दिगम्बर जैनाचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज का, जिन्होने स्वेच्छा से अपने जीवन को पूर्ण वीतरागमय बनाया

त्याग और तपस्या से स्वयं को श्रृंगारित किया꫰ स्वयं के रूप को संयम के ढाँचे में ढाला꫰ अनुशासन को अपनी ढाल बनाया꫰
आचार्य श्री की कलम से जहाँ अनेक ग्रंथों के पद्यानुवाद किए गए तो नवीन संस्कृत और हिन्दी भाषा में छन्दोबद्ध रचनायें भी सृजित की गई꫰ संपूर्ण विद्वत्जगत् आपके साहित्य का वाचन कर अचंभित हो जाता है꫰ एक ओर अत्यंत निस्पृही, वीतरागी छवि तो दूसरी ओर मुख से निर्झरित होती अमृतध्वनि को शब्दों की बजाए हृदय से ही समझना श्रेयस्कर होता है꫰

पूज्यवर सराकोद्वारक आचार्य श्री ज्ञानसागरजी महाराज ने भारत के विभिन्न प्रदेशो व जिलों मे जैन धर्म का डंका बजाया, बाल व युवा वर्ग को जैन धर्म से जोडा़, धर्म का मर्म सिखाया और संयम के मार्ग पर अग्रसर करके धर्म की महती प्रभावना की꫰
जैन समाज का विद्वत वर्ग, डाॅक्टर, एडवोकेट, बैकर्स, भारतीय व राजकीय प्रशासनिक अधिकारी व चार्टर्ड अकाउंटेंट के वृहद् स्तर अधिवेशन व संगोष्ठियों के माध्यम जैन धर्म को सरल व सहजता से समझाया है और चिंतन हेतु प्रेरित किया

आपके स्वर्णिम आभामंडल तले यह स्वयं को स्वर्णिमयी बना लेते थे꫰ आपकी एक-एक पदचाप धन्य कर देती थी꫰ आपका एक-एक शब्द कृतकृत्य कर देता था꫰ एक नई रोशनी और ऊर्जा से भर जाता था हर वह व्यक्ति जिसने क्षणभर को भी आपकी पावन निश्रा में श्वांसें ली है

कितना लिखा जाये आपके बारे में शब्द बौने और कलम पंगु हो जाती है,लेकिन भाव विश्राम लेने का नाम ही नहीं लेते꫰
श्रमण संस्कृति की पावन धरोहर के रुप मे आप सदैव जनमानस के हृदय मे वास करते रहेगे

आपके पथ पर अग्रसर होकर संयम को ग्रहण करके मोक्ष मार्ग प्रशस्त करना ही सच्ची विनयाजंलि होगी
परम पूज्य आचार्य श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज के तृतीय समाधि दिवस के पावन अवसर पर श्रीचरणों मे शत् शत् नमन् वंदन् व अभिवंदन्

लोकेश जैन ढिलवारी, अजमेर राज