साल में 3 बार आने वाले अष्टान्हिका महापर्व की कार्तिक शुक्ल अष्टमी से शुरुआत, जानिए 21 खास बात

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1 नवंबर 2022/ कार्तिक शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
आज 1नवंबर, दिन मंगलवार को कार्तिक शुक्ल अष्टमी तिथि अर्थात अष्टमी पर्व तथा आज से श्री अष्टान्हिका महापर्व का प्रारंभ है।

नये वीर संवत की शुरूआत के आठवें दिन यानि कार्तिक शुक्ल अष्टमी (इस वर्ष 1 नवम्बर) से वर्ष में तीन बार आने वाले अनादि निधन पर्व अष्टाह्निका की शुरूआत हो जाती है। अधिकांश पर्व मनुष्यों के द्वारा मनाये जाते हैं, संभवत: कल्याणकों के अलावा यह एक मात्र पर्व है, जिसे देव मनाते हैं, अपने-अपने घर में या अपने स्थान के मन्दिरों में नहीं, वहां से दूर उर्ध्वलोक से मध्यलोक में आकर। जी हां, इस मध्य लोक के आठवें द्वीप नंदीश्वर द्वीप पर आकर, वह द्वीप जिसका व्यास यानि लम्बाई सुनकर ही आप चौंक जाएंगे, पहले अपनी पृथ्वी की व्यास जाने लें, यह है 12742 किमी और नंदीश्वर द्वीप का व्यास है 163 करोड़ महायोजन। अभी नहीं समझ पाएंगे, किमी में बदलते हैं, 12 हजार किमी की एक महायोजन होता है, यानि पृथ्वी लगभग एक महायोजन की है, अब इस से 163 करोड़ गुना है नंदीश्वर द्वीप, सपने में भी विस्तार की कल्पना नहीं की जा सकती।

कार्तिक शुक्ल अष्टमी, २५४९, श्री अष्टाह्निका महापर्व प्रारम्भ है अतः आठ दिनों अत्यंत भक्ति-भाव से जिनेन्द्र प्रभु की भक्ति आराधना करें।
अष्टान्हिका पर्व व्रत, संयम का पर्व है। इन दिनों धारण किया गया संयम कई गुणित फल प्रदान करने वाला होता है।
श्री अष्टान्हिका पर्व में देव श्री नंदीश्वर जिनालय में जाकर निरंतर अरिहन्त प्रभु की भक्ति आराधना करते हैं। वर्तमान पर्याय में हम लोगों का नंदीश्वर द्वीप जाना संभव नहीं है अतः यही जिनालय में भक्ति आराधना करें तथा नंदीश्वर जिनालय की परोक्ष वंदना करें।
अष्टमी/चतुर्दशी तथा अष्टान्हिका आदि शास्वत पर्व हैं। इन दिनों में पाप कार्यो से बचने हेतु धारण किया संयम विशेष फलदायी होता है। इन दिनों में की गई भगवान की भक्ति,पूजन तथा व्रत आदि विशेष महत्व के होते हैं।

1 अष्टान्हिका पर्व एक वर्ष मे तीन बार आता है आषाढ़़, फाल्गुन, कार्तिक मास मे आते है । नंदीश्वर श्री जिनधाम, बावन पुंज करौं 2 नंदीश्वर द्वीप के 52 मंदिरों के 52 अर्घ चढ़ाओ आठ दिन तक ये शाश्वत प्रतिमाएं है इनको मन मे धारण कर आनंद का भाव धरो । आषाढ़ शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक है ।
3 अष्टान्हिका पर्व में मुख्यतः सिद्धचक्र विधान या नंदीश्वर विधान किया जाता है ।
4 मैनासुन्दरी ने श्रीपाल जी आदि 700 रोगियों के कुष्ठ रोग निवारण के लिए सिद्धचक्र विधान किया था ।
5 सिद्धचक्र विधान मे कुल 2040 अर्घ चढ़ते है ।
6 सिद्धचक्र विधान मे अनंत सिद्ध परमेष्ठी की आराधना की जाती है ।
7 नंदीश्वर द्वीप 163करोड़ 84 लाख महायोजन का और एक महायोजन होता है 6000 कि. मी. का । नंदीश्वर द्वीप एक दिशा में 8 , 83, 040 करोड़़ किलोमीटर विस्तृत है । नंदीश्वर द्वीप मे कुल 52 जिनालय है ।
9 नंदीश्वर द्वीप मे प्रत्येक जिनालय का आकार-लम्बाई-100 योजन, चौड़ाई-50 योजन, ऊंचाई-75 योजन प्रत्येक चैत्यालय की
10 मानुषोत्तर पर्वत को मनुष्य पार नहीं कर सकता है । सिद्धचक्र विधान मे पहले दिन आठ अर्घ चढ़़ते है ।
11 विदेहक्षेत्र मे 160 तीर्थंकर होते है, अजितनाथ भगवान के समय मे 170 तीर्थंकर हुए ।
12 -प्रत्येक गर्भ गृह मे हलकी मुस्कान बिखेरती 108-108 प्रतिमाऐं है वो भी 500 धनुष ऊँची है यानि क़ुतुबमीनार से भी दस गुना ऊँची वो भी खड्गासन नहीं, पद्मासन है ।
13 सौधर्म आदि कल्पों के 12 इंद्र भवनत्रिक व अन्य देवों के साथ चारों दिशाओं मे 6-6 घंटे (दो -दो पहर ) पूजा करने के बाद दिशा बदलते है और लगातार 192 घंटे पूजा – अर्चना करते है ।
14 प्रत्येक चैत्यालय के मुख्य द्वार 768 कि. मी. ऊँचा , यानि माउंट एवरेस्ट से भी सौ गुना ज्यादा ऊँचा, 384 कि. मी. चौड़ा होता है ।
15 भरत क्षेत्र मे दिन और रात्रि का आवागमन चलता रहता है और नंदीश्वर द्वीप पर दिन व रात्रि का भेद नहीं होता, इसीलिए चारों निकायों के देव चौबीस घंटे भगवान की आराधना कर सकते है हम सबकी शक्ति हो तो आप भी चौबीस घंटे आराधना कर सकते है ! लेकिन काल दोष के कारण ऐसा नहीं हो पाता है । करोड़ो सूर्य का तेज़ जिन बिम्ब के तेज़ के आगे दीपक की तरह प्रतीत होता है !
16 -नंदीश्वर द्वीप के मंदिरो मे जो प्रतिमाएं है उनके होंठ व नाखून लाल रंग के होते है तथा भौंह व केश काले होते है नयन काले और सफेद होते है !
17 नंदीश्वर द्वीप की एक दिशा मे कुल 13 चैत्यालय है, नंदीश्वर द्वीप मे -अंजनगिरि चार पर्वत, दधिमुख पर्वत 16 होते है !ये सब चारो दिशाओ मे पर्वत -ढोल आकार के होते है ! , अंजन गिरी की कुल ऊंचाई 84योजन ! लाल वर्ण के रतिकर पर्वत होते है !

18 नंदीश्वर द्वीप मे स्थित प्रतिमा पदमाशन, आसान वाली और 500 धनुष ऊचाई वाली है !
19 अशोक, सप्तछन्द, चम्पक, आम्रवन के मध्य दधिमुख पर्वत स्तिथ है !
20 नंदीश्वर द्वीप के प्रत्येक चैत्यालय मे 108 प्रतिमा होती है! नंदीश्वर द्वीप मे कुल 52 जिनालय और कुल 5616 प्रतिमा है !
21 सैल बत्तीस एक सहस योजन कहे –ये रतिकर पर्वत के लिए लिखा है साथ ही इनकी कुल संख्या 32 और 1000 योजन ऊँचे है