आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी मथुरा में पावन चातुर्मास संपन्न करने के पश्चात् आगरा में धर्मप्रभावना पूर्वक मंगल प्रवास चल रहा है| आगरा महानगर में स्थित प्राचीन जिनालयों के दर्शन की श्रृंखला में आचार्यश्री ने धूलियागंज, बेलनगंज, छीपीटोला, राजा की मंडी, मोती कटरा, नशियां जी आदि उपनगरों में विशाल व भव्य जिनालयों के दर्शन-वंदन कर असीम आनंद का अनुभव किया| श्री मंदिर जी में विराजमान सैकड़ों वर्ष प्राचीन जिनबिम्ब व वास्तुकला को देखकर मन प्रफुल्लित हो गया। जगह-जगह गुरुभक्तों ने आचार्यश्री के पाद-प्रक्षालन व मंगल आरती कर भव्य अगवानी की|
अपनी अमृतमयी पीयूष वाणी से भक्तों को लाभान्वित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि हमें देव-शास्त्र-गुरु की भक्ति बड़े ही विवेक के साथ करनी चाहिए। श्री जिनेंद्र प्रभु के दर्शन का रहस्य बताते हुए आचार्यश्री ने कहा कि हम प्रतिमा का दर्शन स्वयं के लिए करते हैं| प्रतिमा का आवलंबन लेकर हम स्वयं के गुणों को जागृत करते हैं तथा हमारे अंतरंग में स्थित भगवान आत्मा के अनंत गुणों को निहारने का प्रयत्न करते हैं। हमें अपने आत्म-कल्याण की भावना से श्री जिनेंद्र प्रभु के दर्शन करते हुए मोक्ष मार्ग पर बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि मोक्षमार्ग में सर्वप्रथम सम्यग्दर्शन आवश्यक है| इसके अभाव में कोई भी क्रिया कल्याणकारी नहीं है|
आगरा महानगर में अनेकों विशाल व भव्य जिनालयों के दर्शन कर आचार्यश्री ने कहा कि इतने प्राचीन व ऐतिहासिक मंदिरों में विराजमान अतिशयकारी जिनबिंबों के दर्शन कर यह प्रतीत होता है कि किसी समय में आगरा जैन आबादी से परिपूर्ण रहा होगा| यहाँ के मंदिरों की कला, शैली तथा विराटता देखकर मैं अभिभूत हो गया| जिस प्रकार दिल्ली का चांदनी चौक क्षेत्र अपने अंदर जैन समाज की प्राचीनता व ऐतिहासिकता हो समेटे हुए है, उसी प्रकार आगरा में भी जैन समाज की बहुलता का जीवंत उदाहरण देखने को मिलता है| उल्लेखनीय है कि आगरा में अल्प-प्रवास के दौरान आचार्य श्री आगामी समय में जयपुर हाउस, ज्योति नगर, कमला नगर, बोदला आदि उपनगरों में धर्मप्रभावना करते हुए शीघ्र ही राजधानी दिल्ली की ओर मंगल विहार करेंगे|
– समीर जैन, पीतमपुरा (दिल्ली)