#शिरपुर #अंतरिक्ष_पारसनाथ का कड़वा सच, दिगंबरों को बांटने की शुरुआत किसने की और फोटो लगाने का मंशा क्या है?

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16 अक्टूबर 2022/ कार्तिक कृष्णा सप्तमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी

महाराष्ट्र के शिरपुर अंतरिक्ष पाश्र्वनाथ जी को सरकारी कैद से मुक्त कराने के लिए, हमने या अपने किसी ने, क्या कोई पहल की ? क्या यह हम सबका फर्ज नहीं था ? क्या यह हमारी कमेटियों की ड्यूटी नहीं है? अभी हम पंथवाद या गछवाद में नहीं जा रहे, क्योंकि इसी से एक नया विवाद खड़ा करते हैं ।

अगर थोड़ा इतिहास देखें , क्योंकि वर्तमान में आचार्य श्री और एलक श्री सिद्धांत सागर जी महाराज पर , दिगंबरों का एक वर्ग अनर्गल आरोप लगा रहा है। खासकर उन्हीं से , एक बात अगर पूछे कि

दिगंबरों को पहले बांटा किसने?

एक नया पंथ किसने जन्म दिया?

किसने अपने पंथ के गुरु की फोटो दूसरे के मंदिर में लगाई ?

क्या यह अनजाने में लगाई गई थी? अगर अनजाने में थी, तो उस भूल का सुधार तो होना चाहिए ।

अगर जानबूझकर लगाई गई थी , तो क्या एक दिगंबर आमनाओं के मंदिर पर कब्जा करने यह कोशिश तो नहीं?

आज इस सत्य को आईने में देखने की बजाए, सोशल मीडिया पर जब हटाने की बात करते हैं, तो मानो सीना चौड़ा करके, आवाज निकलती है कि दिगंबर समाज को तोड़ा जा रहा है, फोटो के नाम पर। अगर वास्तव में दिगंबर समाज के शेर होते , तो हकीकत में ऐसा गलत काम ही नहीं करते। पहले अलग पंथ बना दिया, उस पंथ के नाम पर दिगंबर संप्रदाय को क्या तोड़ा नहीं गया? आज दंगल करने कराने का मजा ले रहे हैं ।

पर हम अपने गिरेबान में झांकने की बजाय , दूसरों के कपड़े फाड़ने लगते हैं क्योंकि अपने हाथों अपने कपड़े उतार कर दिगंबरत्व अपनाने का काम तो कर ही नहीं सकते है । ऐसे में कैद से मुक्ति का संकल्प लेकर , जो एक महान संत , अपने लिए नहीं, समाज के हित के लिए, आपसी भेद मिटाने के लिए, 800 किलोमीटर के लगभग , स्वास्थ्य के प्रतिकूल होते हुए भी , जब खड़ा होना भी मुश्किल हो गया था, पर चलें , तो उनकी चर्या पर भी उंगली उठाने से बाज नहीं आए , क्योंकि उनकी उंगली कभी अपने ऊपर नहीं उठी।

पर कहते हैं ना , तप, त्याग, तपस्या जब श्रेष्ठता की ऊंचाई पर पहुंचती है, तो ऐसी तकलीफ , उपसर्ग अपने आप हार मानते हुए समर्पण करते हैं। और वही हुआ आचार्य श्री के साथ। प्रतिकूलता अनुकूलता में बढ़ती गई और जब उन्होंने शिरपुर प्रवेश किया तो वह पूरी तरह स्वस्थ दिख रहे थे। यही नहीं उन के बढ़ते चरण को देखकर, शिरपुर की कमेटी ने यह प्रस्ताव पारित कर दिया कि हम आचार्य श्री की आज्ञा में रहेंगे और जैसा वह कहेंगे, हम वैसा ही करेंगे । पर बाहरी दबाव के चलते दोगुलापन शुरू हो गया जो आचार्य श्री सोच कर आए थे, उस सारी सोच को उन्होंने अपनी चालों से जैसे पलट दिया। उनके निर्देशों को अब यूटर्न में बदल दिया ।

ऐसा क्या हुआ? कौन था दबाव करने वाला? क्यों कमेटी मंजूर कर दोगलेपन पर उतर आई ? क्यों फोटो के नाम पर एक पंथ दिगंबरों में ही जैसे तोड़ने की शुरुआत कर रहा है? गलती सुधारने की बजाए अनर्गल बात कर रहा है।

ऐसे कई सवालों के जवाब चैनल महालक्ष्मी ने एलक श्री सिद्धांत सागर जी महाराज से पूछे , क्योंकि वह खुद एक कट्टर मुमुक्षु रहे हैं । जी हां , कट्टर मुमुक्षु और उनके पिताजी भी मुमुक्षु मंत्री रहे हैं । यही नहीं, हमने वहां मौजूद कई मुमुक्षु पदाधिकारियों से भी बात की , जिससे दूध का दूध और पानी का पानी हो।

उसी का एक संक्षिप्त विवेचन, आपके लिए चैनल महालक्ष्मी , मंगलवार , 18 अक्टूबर रात्रि 8:00 के विशेष एपिसोड में आपके बीच लाएगा।

जिसमें केंद्र बिंदु होगा फोटो क्यों लगाई गई? और दूसरा बड़ा प्रश्न के दिगंबरों को बांटा किसने ? सवाल का जवाब ही ढूंढना होगा कि क्या आप जानते हैं कि दिगंबरों में नई पंथवाद की शुरुआत किसने की?

शिरपुर अंतरिक्ष पाश्र्वनाथ मंदिर दिगंबर मत का है या कांजी मत का ?
अगर दिगंबर मान्यता का मंदिर है तो कानजी स्वामी की फोटो क्यों लगाई गई ?
अगर फोटो भूलवश लग गई तो क्या हटानी नहीं चाहिए?
अगर फोटो जानबूझकर लगाई तो क्या यह कब्जे की साजिश तो नहीं ?
शिरपुर कमेटी कौन सी बाहरी ताकत के दवाब में है ?
आजकल वह कमेटी, जिसने आचार्य श्री की बातें स्वीकारने का प्रस्ताव पारित किया था , अब दोगलापन क्यों दिखा रही है?

ऐसे कई विभाग सवाल चैनल महालक्ष्मी ने समाज हित में और समाज को एक करने की मंशा से, अंतरिक्ष पारसनाथ जी की कैद से मुक्ति के लिए , पूछे और उनके बेबाक जवाब दिए ऐलक श्री सिद्धांत सागर जी महाराज ने, जो इस केस के अब तक 17000 से ज्यादा पन्ने पिछले कुछ दशकों में अध्ययन कर चुके हैं
जरूर सुनिएगा और देखे कल मंगलवार 18 अक्टूबर को रात्रि 8:00 बजे,