अध्यक्ष/ प्रबन्धकारिणी
1. अखिल भारतवर्षीय तीर्थक्षेत्र कमेटी
2. श्री दिगंबर जैन शाश्वत विहार (निहारिका)
3. दिगंबर जैन शाश्वत भवन
4. उत्तर प्रदेश प्रकाश भवन
5. श्री कुन्दकुन्द कहान ट्रस्ट
6. दि. जैन यात्री निवास तीर्थक्षेत्र कमेटी
7. भरत-कुसुम मोदी भवन
8. गुणायतन ट्रस्ट भवन
9. दिगम्बर जैन बीसपंथी कोठी
10. दिगंबर जैन तेरापंथी कोठी
11. मध्यलोक शोध संस्थान
12. आ. सुमतिसागर त्यागीव्रती आश्रम
13. दि. जैन तारण-तरण कोठी
14. दि. जैन लमेंचू मैत्रीय भवन
15. श्री अणिंदा पार्श्वनाथ भवन
16. सन्मति साधना सदन
17. श्री भा. दिग. जैन त्रियोग आश्रम
18. जहाज मंदिर (सराक भवन)
19. धर्म मंगल जैन विद्यापीठ
20. भोमिया भवन
21. कच्छी धर्मशाला
22. सेवायतन ट्रस्ट
23. श्वेताम्बर सोसायटी
24. तलहटी धर्मशाला श्वेताम्बर
25. दिगम्बर जैन म्यूजियम शोध समिति
26. आ. शान्तिसागर धाम
27. दि. जैन समवशरण मंदिर
28. दि. जैन तीस चौबीसी मंदिर
29. विमल समाधि मंदिर
30. बाहुबली चौबीसी मंदिर
31. सरस्वती भवन,
पोस्ट मधुबन, जिला गिरिडीह, झारखंड-825329
32. बीसपंथी कोठी
33. तेरापंथी कोठी
34. उदासीन आश्रम
ईसरी बाजार, निकट पारसनाथ स्टेशन, गिरडीह
विषय : शाश्वत अनादिनिधन तीर्थ सम्मेदशिखरजी की सुरक्षा व पावनता
बरकरार रखने की हमारी सामूहिक जिम्मेदारी
माननीय महोदय,
सादर जयजिनेन्द्र।
जैन धर्म-संस्कृति का अनादि निधन शाश्वत तीर्थ है श्री सम्मेदशिखरजी, यह निर्विवाद है, और आज भी इस धरा की रज का कण-कण त्यागियों के तप-प्रताप की वर्गणाओं से अभिभूत है। इसकी सुरक्षा, पावनता को बरकरार रखना, अतिक्रमण – जंगल कटाव को रोकना, हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। इस तीर्थ के लिए दिगम्बर-श्वेताम्बर में बंटकर, अपने कर्तव्य से मुख नहीं मोड़ा जा सकता।
कोरोना काल की बुराइयों में कई अच्छाई इस तीर्थ को स्वत: प्राप्त हुई, जिनमें – सवच्छ पर्यावरण, वन कटाव में गिरावट, अवांछित अतिक्रमण पर विराम, पर्वत पर बढ़ी स्वच्छता, आदि प्रमुख रहे, जो हमारे द्वारा तो नहीं हो सका, पर महामारी ने यह कर दिखाया। पर लॉकडाउन अनलॉक होते ही अवांछित गतिविधियों में एकाएक वृद्धि हो गई है, जो हम सभी के लिए बेहद चिंताजनक है, कुछ बढ़ते खतरें निम्न हैं:-
1. 16 दिसम्बर को पारसनाथ स्टेशन से महज दो किमी दूर डुमरी चौक पर एक नानवेज होटल खुल गया और नाम रखा गया है ‘पारसनाथ हिल व्यू’। अहिंसा धरा पर अहिंसा के अग्रदूत के नाम पर मांसाहार व हिंसा। आप सबकी नाक के नीचे, खुल गया, विरोध की एक आवाज नहीं, धरना नहीं, एसडीएम, प्रशासन को सामूहिक ज्ञापन नहीं। अधिकांश को तो इसकी जानकारी तक नहीं है।
2. अतिक्रमण रोकने के नाम पर चोपड़ा कुंड की धर्मशाला बरसों पहले तोड़ दी गई, हम अवसरवादिता के चलते आंखें मूंदे बैठे रहे, सामूहिक एकता, पूरे समाज के हित में भी आवाज नहीं उठी। अन्य सम्प्रदाय की सड़क के बीच, पेड़ के नीचे रखी मूर्ति भी हटती है, तो देश में जलजला आ जाता है और हम हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहे।
3. सुरक्षा के नाम पर पहले त्यागियों का शरण स्थल डाक बंगला छिन गया, कई धर्मशालाओं में कैम्प लगा दिये गये हैं, पर वहीं इस क्षेत्र की पावनता को ताक पर रख दिया गया, जूतें पहनकर पहाड़ पर घूमना – वॉक करना और वहां अभक्ष्य बनाना-खाना, यह किसी से छिपा नहीं है।
4. जहां जैन बंधु पावनता को बरकरार रखने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं 31 दिसंबर से 03 जनवरी तक, कुछ अलग ही दृश्य सामने आये, जो बेहद चिंता का विषय हैं। हजारों की संख्या में अजैन युवक-युवतियां यहां पर्यटक के रूप में आ रहे हैं। विमल समाधि के सामने पार्किंग में उनके वाहन खड़े होते हैं। फिर उनका जूते-चप्पल पहनकर पावन पर्वत पर चढ़ना, भारतीय संस्कृति के विपरीत व्यवहार, और डिब्बों में लाये अभक्ष्य-मांसाहार भोजन को ऊपर पर्वत पर खाना, अभक्ष्य अंश पर्वतों पर कूड़ें के रूप में फेंकना, यह किसी से छिपा नहीं है, क्या इसको रोकने के लिये कोई योजना बनाई गई है। अगर यह पर्यटक केन्द्र और मनचलों का अड्डा बन गया तो बढ़ती अपावनता और हिसां का केन्द्र बन सकता है। अभी टोकों के बाहर दिख रहे हैं, वह दिन भी सामने होगा, जब टोकों पर उनके टाट बिछे होंगे।
5. कुछ बरस पहले तक यात्रियों के साथ एक गार्ड़ साथ जाता था, उसे विशेषकर दिगम्बर कमेटियों ने तो बंद कर दिया गया।
6. लाखों जैन यात्रियों के आने से केन्द्र व राज्य – दोनों सरकारों को कई अरब की राशि मिलती है, उसके बदले में हमारे तीर्थ के विकास और सुरक्षा के लिये सामूहिक दबाव नहीं डाला जाता।
7. अभी यात्रियों का बड़ी संख्या में आना शुरू नहीं हुआ, पर अजैन युवक-युवतियों की बढ़ती गतिविधि से ऊपर अतिक्रमण और दुकानें, जो कोरोना के कारण, बिल्कुल बंद हो गई, अब फिर बड़ी संख्या में शुरू हो गई हैं।
8. क्या प्रवेश द्वार पर, चोपड़ा कुंड, गणधर टोंक, जल मंदिर, चंदाप्रभु-पारस टोंक पर सुरक्षा गार्डों की व्यवस्था नहीं की जानी चाहिये, जो आसपास के 3-4 किमी में अवांछित गतिविधि जैसे जूते-चप्पल, भोजन, अतिक्रमण आदि पर विराम लगाने में कारगर हो।
एक बात रह-रहकर जहन में आती है, कि दो भाई अपने घर की लड़ाई पर ध्यान तो देते हैं, करोड़ों रुपये हर तारीख पर वकीलों में लुटाते हैं। पर क्या नहीं लगता, दो बिल्लियों की इस लड़ाई का पूरा फायदा बंदर उठा लेता है। क्या आज ‘मैं-मेरा’ की जगह ‘हमारा-सबका तीर्थ’ नहीं कहा जा सकता। आदि-महावीर के वंशज हैं, जैन हैं, सिर्फ जैन हैं। एक और एक ग्यारह होते हैं और जब एक-एक को मारता है तो शून्य हो जाता है। लड़ाई में कोई भी नहीं जीतता, एक की छोटी, दूसरे की बड़ी हार होती है।
सविनय विनम्र अनुबंध है कि मिलकर, समन्वय बनाकर, उचित कदम उठाकर अपनी जिम्मेदारियों का पूर्ण निर्वहन किया जाये।
क्षमा भाव सहित,
भवदीय
(शरद जैन)