आर्यिका भव्यनंदनी श्रद्धांजलि सभा -“धन्य है वो मां जिसने जन्म दिया वसुनंदी जैसे लाल को,जो कर्मो से अपने काट रहा संसार के जाल को”

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त्रिवेणी देवी से जैन आर्यिका भव्य नंदिनी बन समाधि पूर्वक देवलोक गमन करने वाली आर्यिका माता की श्रद्धांजलि सभा का आयोजन दिगम्बर जैनाचार्य वसुनंदी महाराज के ससंघ सानिध्य में जम्बूस्वामी तपोस्थली बोलखेड़ा में आयोजित कर अनेको स्थान से उपस्थित महानुभावों सहित जैन सन्तो व साध्वियों ने अपनी भावांजलि दी।
तपोस्थली के प्रचार प्रभारी संजय जैन बड़जात्या ने अवगत कराया कि विगत 5 जनवरी को तपोस्थली बोलखेड़ा पर आर्यिका भव्यनंदनी माताजी का समाधिपूर्वक देवलोकगमन हो गया था जिनको श्रद्धांजलि देने के लिए विनियांजली सभा का आयोजन किया गया। सभा का प्रारम्भ आचार्य विद्यानंद महाराज के चित्र अनावरण से हुआ तो इस अवसर पर आर्यिका वर्धस्व नंदनी माताजी ने कहा कि लगभग तीन वर्ष चली तप साधना में कितनी ही प्रतिकूल परिस्थिति आई किंतु भव्यनंदनी माता कभी विचलित नही हुई उन्होंने समता भाव धारण कर बोलखेड़ा में समाधि की भावना प्रकट की जो अंतिम समय मे पूर्ण हुई।
विनियांजली के क्रम में मुनि प्रशमानंद महाराज,मुनि शिवानंद महाराज,मुनि प्रज्ञा नंद महाराज ,मुनि जिनानंद महाराज,मुनि ज्ञानानंद महाराज ने भावांजलि देते हुए कहा कि त्रिवेणी देवी वास्तविक रूप से भव्य थी जिन्होंने अपनी कुक्षी से भव्य आत्मा आचार्य वसुनंदी महाराज को जन्म दिया। अंतिम समय मे पुत्र की भव्यता जान उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया तो गुरु वसुनंदी ने भी भव्यनंदनी नामकरण कर उनका जीवन सार्थक कर दिया। “धन्य है वो मां जिसने जन्म दिया वसुनंदी जैसे लाल को,जो कर्मो से अपने काट रहा संसार के जाल को”।
वातावरण हुआ भावुक जब ग्रहस्थ पति रिखबचंद जैन निवासी मनिया वर्तमान में ब्रह्मचारी भव्यप्रकाश ने अपनी विनियांजली देते हुए आर्यिका भव्यनंदनी को श्रद्धांजलि दी तो उपस्थित सदन भावुक हो गया। सभा में ब्रजेंद्र शास्त्री,मनोज शास्त्री,रमेश चंद गर्ग,ब्रह्मचारिणी बहनों ने भी अपने शब्दों से श्रद्धांजलि दी। सभा के अंत मे सभी को आशीर्वाद देते हुए आचार्य वसुनंदी महाराज ने कहा कि जैन दर्शन का मूल यही है जिसे प्रत्येक श्रमण,श्रमणी मन से चाहता है कि अंतिम समय गुरु की शरण मे समाधि पूर्वक मृत्यु को वरण करू जो भव्य आत्माओं को ही प्राप्त होता है।
आचार्य वसुनंदी ग्रहस्थ पुत्र हैं त्रिवेणी देवी के पांच पुत्रों में से एक पुत्र जैन आचार्य वसुनंदी महाराज हैं। जो वर्तमान में संघ सहित जम्बूस्वामी तपोस्थली बोलखेड़ा में विराजमान हैं।