01 अक्टूबर 2022/ अश्विन शुक्ल षष्ठी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
आरन नाम के 15 वे स्वर्ग में अपनी आयु पूर्ण कर 10 वे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी भगवान का जीव भद्रपुर नगर के स्वामी राजा दशरथ की महारानी सुनंदा के गर्भ में आता है और उसके आने से 6 माह पहले ही रत्नों की बरसात राजमहल पर शुरू हो जाती है ।
गर्भ और जन्म
इस जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में मलयदेश के भद्रपुर नगर का स्वामी दृढ़रथ राज्य करता था, उसकी महारानी का नाम सुनन्दा था। रानी सुनन्दा ने चैत्र कृष्णा अष्टमी के दिन उस आरणेन्द्र को गर्भ में धारण किया एवं माघ शुक्ल द्वादशी के दिन भगवान शीतलनाथ को जन्म दिया।
तप कल्याणक
एक बार में वन विहार के लिए चले । वन में कोहरा छाया हुआ था, सूर्योदय होते ही कोहरे का पता भी नहीं चला यानी कोहरा एकदम गायब हो गया, नष्ट हो गया। बस यही चिंतन कि संसार भी इसी तरह नाशवान है और उनको इस संसार से वैराग्य हो गया। राज्यभार अपने पुत्र को सौंपकर देवों द्वारा लाई गई ‘शुक्रप्रभा’ नाम की पालकी पर बैठकर सहेतुक वन में पहुँचे और माघ कृष्ण द्वादशी के दिन स्वयं दीक्षित हो गये। अरिष्ट नगर के पुनर्वसु राजा ने उन्हें प्रथम खीर का आहार दिया था।
दीक्षा ले ली और फिर 3 वर्ष तक नानाविध तप किए और और पौष कृष्ण चतुर्दशी को सांय काल के समय केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। दिव्य ध्वनि खिरने लगी और जब आयु कर्म एक माह शेष रह गया ।
केवलज्ञान और मोक्ष
अनन्तर छद्मस्थ अवस्था के तीन वर्ष बिताकर पौष कृष्ण चतुर्दशी के दिन बेल वृक्ष के नीचे केवलज्ञान को प्राप्त कर लिया। अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर एक माह का योग निरोध कर आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन कर्म शत्रुओं को नष्ट कर मुक्तिपद को प्राप्त हुए।
पिता: इक्ष्वाकुवंशी महाराजा दृढ़रथ,
माता:महारानी नंदा,जन्मस्थान:मलय देश का भद्रपुरनगर/भद्दीलपुर(भद्रिकापुरी, इटखोरी, जि. चतरा-झारखंड राज्य),
आरण स्वर्ग के इंद्र महारानी नंदा के गर्भ में अवतीर्ण हुए
गर्भकल्याणक तिथि:चैत्र कृष्ण 8,
गर्भ नक्षत्र:पूर्वाषाढा,
गर्भावास:अंतिम रात्रि,
जन्मतिथि : माघ कृष्ण 12,जन्मनक्षत्र:पूर्वाषाढा,
वैराग्य कारण:हिम नाश,
दीक्षातिथि :माघ कृष्ण 12,दीक्षा नक्षत्र:मूल,दीक्षावन:सहेतुक
दिक्षोपवास: 2 (बेला),दीक्षाकाल:अपराह्न,
दीक्षा पालकी:शुक्रप्रभा, दीक्षास्थान:भद्दीलपुर
प्रथम आहार दाता:पुनर्वसु राजा, आहार वस्तु:गायके दूधकी खीर
प्रथम आहार स्थान:अरिष्टपुर, सहदीक्षित:1000, छद्मस्थकाल:3 वर्ष,
केवलज्ञानतिथि: पौष कृष्ण 14,
केवलज्ञान नक्षत्र:पूर्वाषाढा, केवलोत्पत्ति काल:अपराह्न,
गणधर संख्या: 87,मुख्य गणधर:कुन्थु,सर्वऋषि:100000
आर्यिका संख्या:380000,मुख्य आर्यिका:धरणा,
श्राविका संख्या:400000, श्रावक संख्या:200000,
मुख्य श्रोता:सीमंधर,यक्ष:ब्रह्मेश्वर,यक्षिणी:ज्वालामालिनी,
योग निवृत्ति काल:1 मास पूर्व,चिन्ह:कल्पवृक्ष,
आयु:1 लाख पूर्व वर्ष,शरीरकी अवगाहना:90धनुष,
निर्वाण तिथि: आश्विन शुक्ल 8, मोक्षकाल: पूर्वान्ह, मोक्षनक्षत्र:पूर्वाषाढा,सहमुक्त:1000मुनि मुक्तिस्थान:विद्युतवर कूट श्रीसम्मेदशिखरजी.
10वे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ भगवान के चरणों में कोटी कोटी नमन।
तब विहार करते-करते सम्मेद शिखर जी आ पहुंचे। एक माह का योग निरोध करके , उन्होंने प्रतिमा योग धारण कर लिया और आश्विन शुक्ल अष्टमी जो आगामी सोमवार 3 अक्टूबर को आ रही है । उस दिन सांयकाल के समय पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में समस्त कर्मों का नाश करके 1000 मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया। देवों ने आकर उनके निर्वाण कल्याणक की पूजा की। इसी विद्युतवर् कूट से 42 करोड़ 32 लाख 42 हजार 905 महामुनिराज भी मोक्ष गए हैं । कहा जाता है कि इस कूट की निर्मल भावों से वंदना करने से , एक करोड़ उपवास का फल मिलता है।
बोलिए, चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी के साथ , 10 वे तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी भगवान के मोक्ष कल्याणक की जय जय जय।