जैन संत को अदालत में उपस्थित होने का निर्देश

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22 अगस्त 2022/ भाद्रपद कृष्ण एकादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
दिल्ली के निकट गाजियाबाद की अदालत संख्या पांच में, एक जैन संत को 6 सितंबर को प्रातः 10:00 बजे स्वयं या अपने किसी व्यक्ति को उपस्थित होने का निर्देश 20 अगस्त को अदालत ने जारी किया है।

वैशाली, सेक्टर 3 गाजियाबाद के 58 वर्षीय महीम जैन द्वारा इंदिरापुरम थाने में दर्ज याचिका पर सुनवाई करते हुए , अदालत ने जैन संत जिनका ग्रहस्थ का नाम संजय जैन, पुत्र श्री सुंदरलाल जैन, उम्र करीब 49 वर्ष, निवासी पुष्पा आभूषण स्टोर, ग्राम सोनागिरी, जिला धुले महाराष्ट्र , जिनका दूसरा पता निर्मलायतन आश्रम , नानौता जिला सहारनपुर ,उत्तर प्रदेश बताया गया है । उन पर इंदिरापुरम थाने में याचिका आईपीसी धारा 420, 406, 295, 295 ए और 296 में दर्ज की गई है और जिसके लिए अदालत ने उस आवेदन पर, अब जैन संत को उपस्थित रहने के आदेश को जारी किया है।

Sec 420 – धारा 420 आईपीसी- छल करना और बेईमानी से बहुमूल्य वस्तु / संपत्ति देने के लिए प्रेरित करना , यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है।

आईपीसी (IPC) 295 भारतीय दंड संहिता की धारा 295 के अनुसार, जो कोई किसी उपासना के स्थान को या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा पवित्र मानी गई किसी वस्तु को नष्ट, नुकसानग्रस्त या अपवित्र इस आशय से करेगा कि किसी वर्ग के धर्म का तद्द्वारा अपमान किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा कि व्यक्तियों का कोई वर्ग ऐसे नाश, नुकसान या अपवित्र किए

अगर कोई व्यक्ति भारतीय समाज के किसी भी वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करता है या इससे संबंधित वक्तव्य देता है, तो वह आईपीसी (IPC) यानी भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 295 ए के तहत दोषी माना जाएगा.

आईपीसी (IPC) 296 किसी भी व्यक्ति का ऐसा साक्ष्य जो औपचारिक है शपथपत्र द्वारा दिया जा सकता है और, सब न्यायसंगत अपवादों के अधीन रहते हुए इस संहिता के अधीन किसी जांच, विचारण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य में पड़ा जा सकता है।

इस बारे में पूरी जानकारी चैनल महालक्ष्मी के मंगलवार, 22अगस्त, रात्रि 8:00 बजे के एपिसोड में देख सकते हैं। क्या था कारण कि अदालत को किन धाराओं में, क्यों आदेश जारी करना पड़ा।