सम्यकदृष्टि जब भी भोजन ग्रहण करता है,औषधि मानकर ग्रहण करता है: मुनिपुंगव श्री सुधासागर

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
सम्यकदृष्टि जब भी भोजन ग्रहण करता है,औषधि मानकर ग्रहण करता
आचार्य श्री- मैं दुखी हूं तो हो जाऊं, अपने चेहते को क्यों दुखी करो
1.सम्यकदृष्टि जब जड पदार्थों को ग्रहण करता है तो कष्ट महसूस होता है, जब मुनि महाराज आहार चर्या को जाते हैं तो उन्हें भोजन अच्छा नहीं लगता, भोजन को औषधि मानकर ग्रहण करते हैं जिस प्रकार औषधि ग्रहण करते समय औषधी से उबकर औषधी मर्जी से नहीं मन मार कर खाते हैं दवाई से बीमारी ठीककर जल्दी से जल्दी झुठे ये भावना भाता हैं।
2.समयसारजी बिना गुरु के पढ़ा तो समयसारजी एक वायरस है जिन जिन द्वारों से आश्रव रोग आते हैं उन उन द्वारों पर रोध करो,जब समयसारजी से नुकसान बीमारी नहीं होगी,समयसार पढ़ने के बाद डुबकी लगानी है ,डूबना नहीं
3.नियत द्वारा को समझा और नियत धारा में हमको खुद समझौता करना पड़ेगा प्रकृति नहीं करेगी हमसे समझौता,हम पूर्णता नहीं प्राप्त कर सकते हमें अपुर्ण ही रहना पड़ेगा हमें उस रास्ते के कष्ट उठाने पड़ेंगे,आयु घटाई जा सकती है आयु बढ़ाई नहीं जा सकती।
4.जब आचार्य श्री जी बहुत बीमार थे लेकिन उन्होंने बताया नहीं क्योंकि सभी शिष्यों,श्रावको का कष्ट होगा क्योंकि सभी आचार्य श्री को बहुत चाहते हैं।
5.कोई व्यक्ति मुझे बार बार दुःख दे रहा है तो समझ जाना कि यह व्यक्ति मेरा नही है मेरा नही हो सकता है
6.चाहत की पहचान ही यही है कि हम उसके दुःख को देखकर मुझे दुःखी हो जाए।
7.साधु पर के सम्बंध में तो इतने दयावान है कि चींटी को देखकर तड़फ जाते हैं परन्तु स्व के सम्बंध में इतने निर्दय है कि कभी शरीर के सम्बंध में नही सोचते।
शिक्षा-जो अपनो से कष्टों को छुपाता है तो समझ जाना कि यह मेरे जनम जनम का मीत है ।।
– अक्षय शास्त्री महुवा तपोदय तीर्थक्षेत्र