22 जुलाई 2022/ श्रावण कृष्ण नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
जनशक्ति, धनशक्ति, आध्यात्म शक्ति एवं सामरिक शक्ति
यह चारों शक्तियां जिस समाज के पास विद्यमान है वह समाज शक्तिशाली है| भगवान महावीर के निर्वाण के पश्चात से आठवीं शताब्दी तक उत्तर भारत में एवं 12वीं-13वीं शताब्दी तक दक्षिणी भारत में जैन समाज एक शक्तिशाली,समृद्ध, आध्यात्मिक, सामरिक ,जनसकती के रूप में विद्यमान रहा| यह काल शांति, एवं वैभव की दृष्टि से उत्कृष्ट काल था| इस काल में जैन मनीषियों ने सभी भारतीय भाषाओं का पोषण अपनी कलम के माध्यम से किया| जिससे इस काल में कला एवं साहित्य के क्षेत्र में खूब उन्नति हुई|
आठवीं स्ता ब्दी में उत्तर-पश्चिम भारत में आक्रान्ताओं द्वारा जैन मंदिरों व धर्म स्थानों को लूटा गया, हमारे अनेक धर्म ग्रंथों व बहुमूल्य साहित्य को अग्नि के सुपुर्द किया गया एवं जैनों की सामरिक शक्ति को नष्ट किया गया| जैन सब वरणो से निकलकर सिर्फ़ बनिया वर्ण के हो गये| जैन धर्मावलम्बियों की आर्थिक शक्ति भी डगमगाने लग गई| जिन जैन मंदिरों के बनवाने के लिए कभी भूमि का मूल्य स्वर्ण सिक्कों में अदा किया गया था| कालांतर में उन्ही जैन मंदिरों में दिया-धूप के लिए भी अर्थ की कमी आ गई|
परन्तु 20 वीं शताब्दी के आरम्भ काल से जैन समाज अपनी परिश्रम व बुद्धि से पुनः आर्थिक दृष्टि से शक्ति संपन्न होने लगा | 21वीं शताब्दी में अर्थात वर्तमान काल में जैन समाज की गिनती आर्थिक दृष्टि से संपन्न समाज के रूप में की जाने लगी हैं |
जैन समाज संख्या की दृष्टि से बहुत छोटा व जैन साधुवृन्दों के दिशा-निर्देश में चलने वाला समाज है|
वर्तमान में जैन समाज कि आर्थिक शक्ति का उपयोग सही रूप में नहीं हों रहा हैं | अधिकांश धन का उपयोग दिखावे एवं बिना प्रयोजन के कार्य करने में किया जा रहा है| अगर जैन समाज के अर्थ का उपयोग सुव्यवस्थित व योजनाबद्ध तरीके से किया जाये तो आने वाले समय में जैन समाज जन शक्ति, वित्त शक्ति एवं आध्यात्म शक्ति से सशक्त हो सकेगा| इन तीनों शक्तियों से सशक्त होने पर चौथी सामरिक शक्ति अपने आप आ जाएगी एवं सम्पूर्ण विश्व में अहिंसा, शांति का साम्राज्य स्थापित हो जायेगा|
हमारे पास प्राकृत, संस्कृत, हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़,बंगला सहित सभी भारतीय भाषाओं के साहित्य की असीम निधि है| पूर्व में बनाये गये असीमित मंदिर एवं गुफाओं में संग्रहित लाखों शिलालेख है| जिनको पढ़ने एवं विश्लेषण करने के लिए विद्वानों कि कमी हैं । उनको प्रोत्साहित करना चाहिए| विद्वानों का मान सम्मान करना चाहिए । जिससे विद्वान पेट की चिंता से मुक्त होकर सम्पूर्ण मनोयोग से कार्य कर इन शिलालेखों पर उद्धृत एवम् साहित्य से अमूल्य संदेशों को जान सकें|
अतः मेरा सभी साधुवृन्दों एवं आचार्य वृन्दों से करबद्ध निवेदन है कि कृपया समाज की वित्त शक्ति को दिखावे, आडम्बर, भीड़ इक्कठी करने की होड़, बिना पुजारी के मंदिर व स्थानक भवन बनाने में विसर्जित नहीं करें| अपितु समाज की निधि का उपयोग सुनियोजित तरीके से समाज के विकास हेतु किया जाये| जिससे सम्पूर्ण विश्व को जैनत्व के रंग में रंगा जा सकें| कृपा कर जैनत्व व जैन दर्शन को जीवंत जन दर्शन बनाने के लिए हम सब मिलकर प्रयास करें ।इस विषय पर चिंतन-मनन करें|
एन. सुगालचंद जैन ,चेन्नई, तमिलनाडु