चांदी-सोने के सिक्के बरसे, अतिशयकारी प्रतिमा को देखने नयन तरसे, क्या 09 जनवरी को फिर होगा चमत्कार!

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सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल / 06 जनवरी 2021
राजस्थान के टोंक जिले में, पिपलू से 4 किमी की दूरी पर श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र है प्यावड़ी। इस गांव में केवल एक जैन परिवार है खेमराज जैन का, ठीक मन्दिर के सामने। जहां पहले कोई अभिषेक करने ना आता हो, वहां अब सैकड़ों आते हैं।
यह मंदिर 32 बरस पुराना है, पर मूर्तियां 200 वर्ष से प्राचीन। पहले गांव के भीतर मन्दिर था और मूर्तियों पर प्रशस्ति में वि.स. 1862 लिखा है। मन्दिर जीण-क्षीर्ण होने लगा तो, वहां से मूर्तियां खेमराज के मकान में आ गई। दो-तीन बरस वहीं रहीं, फिर 32 साल पहले दो महाराज ने टोंक महिला मंडल के सहयोग से मन्दिर निर्माण कर अतिशयकारी चन्दाप्रभु वहां अन्य प्रतिमाओं के साथ विराजमान हो गई।

15 माह पहले की बात है, दीपावली से ठीक पहले चतुर्दशी को पीपलू में रोज प्रक्षाल-पूजा करने वाले बुद्धप्रकाश जैन जी को एक आवाज जैसे गुंजायमान हुई, कि यहां के बाद प्यावड़ी में भी अभिषेक करो। बस चल दिये 4 किमी, वहां धूल मिट्टी हटाई, सारी सफाई की और 15 दिन तक लगातार अभिषेक करने के बाद, पूर्णिमा आई तो अभिषेक के बाद मार्जन करते समय मूर्ति के पास से एक चांदी का सिक्का मिला। हतप्रभ रह गये और फिर तो न टूटने वाला सिलसिला शुरू हुआ चतुर्दशी या पूर्णिमा को सिक्का मिलता रहा। भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी।
फिर होली से पहले चौदस को, पीपलू में अभिषेक के बाद कुछ मन में अलग ख्याल आया, रात्रि 11 बजे दण्डवत चले प्यावड़ी के मंदिर जी ओर, एक दोस्त के साथ। साढ़े छह घंटे में पहुंचे मंदिर, तब वहां 400 से ज्यादा लोग मौजूद थे। आज कुछ खास चमत्कार होगा, ऐसा मन में आभास हो रहा था।

चंदाप्रभु के आगे वंदना में हाथ जोड़ प्रतिज्ञा की, प्रभु आज कुछ खास चाहिये और नहीं मिला तो नौ दिन उपवास करूंगा। अभिषेक के बाद मार्जन शुरू हुआ और सोने की गिन्नी मिली, चंदाप्रभु के हाथ पर मानो रखी हुई थी। सब हैरान हो गये। मंदिर का अतिशय पूरे देश में मशहूर हो गया। अबतो हर पूर्णिमा को चमत्कार दिखने लगा। चांदी के सिक्के, नये नहीं, 100-125 वर्ष प्राचीन होते, पर लगते जैसे अभी-अभी बनकर आये हैं।
यह सिलसिला चलते-चलते मंगसिर माह की पूर्णिमा, 29 दिसंबर को तो ऐसा चमत्कार हुआ, जो अब तक नहीं हुआ। साढ़े पांच सौ से ज्यादा भक्त। 10-15 के हाथ में मोबाइल कैमरे आॅन, जैसे परखना-देखना चाहते हों कि यह चमत्कार होता कैसे है? पर डबल चमत्कार हुआ। प्रथम अभिषेक के पुण्यार्जक ऋषभ जैन कठमाना वाले मालपुरा वालों को मार्जन करते ही चांदी का सिक्का मिला। और फिर शांतिधाराकर्ता चेतन जी वाकलीवाल निमोडिया को शांतिधारा की झारी से चांदी का सिक्का मिला और यही नहीं, कुणालजी मारवाड़ा परिवार नैनवा वालों ने जैसे ही मार्जन किया, मूर्ति की नाभि से सूखी केसर निकली।
आज का विज्ञान, ऐसे चमत्कार को नहीं स्वीकारता, पर नमस्कार से चमत्कारों से इंकार भी नहीं किया जा सकता। अब 09 जनवरी को पौष कृष्ण एकादशी को तीर्थंकर श्री चन्द्रप्रभु का जन्म – तप कल्याणक आ रहा है, इस दिन विशेष अभिषेक व शांतिधारा का आयोजन किया गया है। क्या चतुर्दशी-पूर्णिमा को बरसने वाला चमत्कार, इस चन्दा एकादशी को भी दिखेगा? यह अभी तो नहीं कहा जा सकता, पर चमत्कार कब हो जाये, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता। (पूरी स्टोरी मिलते सिक्कों के साथ देखिये यूट्यूब/channelmahalaxmi पर)