200 वर्षों से आपसी विवादों, कोर्ट के कारण सरकारी तालों में बंद अतिशयकारी, अधर विराजे, अंतरिक्ष पार्श्वनाथ के दिव्य दर्शन पूजन विधान कर मिल सके- महासन्त का ” महा-राष्ट्र ” में प्रवेश

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21 जून 2022/ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
यूं तो अनियतविहारी अतिथि, आचार्यश्री के बुंदेलखंड में प्रथम बार बड़े बाबा के दरबार मे आने के बाद से कई बार राजस्थान, उड़ीसा बिहार बंगाल गुजरात सहित अन्य प्रांतों में विहार और चातुर्मास भी सानन्द सम्पन्न हुए है।

महाराष्ट्र के रामटेक, नागपुर आदि नगरों में भी अनेको बार गुरुचरणों का आगमन हुआ है लेकिन इस बार आचार्यश्री का महाराष्ट्र विहार के कारण समूचे म प्र सहित छतीसगढ़ सूना, सूना सा हो गया है

छतीसगढ़, मप्र, रामटेक, नागपुर तो बुंदेलखंड के ही हिस्से लगते थे।
यहां पर अपरिचित श्रावक गण दूर के रिश्तेदारों की रिश्तेदारी या परिचय बता कर चौकों में सेटिंग कर लेते थे
लेकिन अब परदेस और सर्वथा अपरिचित भाषा भाषियों के साथ ऐसा जुगाड़ कहां सम्भव…

जब से महाराष्ट्र वासियों को संदेश मिला है कि गुरुदेव पधार रहे है तो उनके भावभीने हर्षातिरेक का कोई ठिकाना नही है वे आपस मे मिलकर एक दूसरों को खूप छान, खूप छान कह कर बधाइयां दे रहे है
हालांकि आचार्यश्री के जर्जर स्वास्थ और अद्भुत ऊर्जा से भरे विहार के चलायमान गुरुचरणों की गति और दिशा देख लग रहा है कि आने वाले सम्भव में जरूर कुछ बड़ा देखने, सुनने मिल सकता है
यह भी सम्भव है कि पूरे विश्व के एक मात्र अनूठे, अतिशयकारी, अधर विराजे, अंतरिक्ष पार्श्वनाथ जो विगत 200 वर्षों से आपसी विवादों, कोर्ट कचहरियों के कारण सरकारी तालों में बंद है।

सम्भव है कि….. आचार्यश्री के पहुचने पर ऐसे अद्वितीय अंतरिक्ष, पार्श्वनाथ भगवान के हम सभी और पूरे विश्व के जैन, जैनेतरो को भव्य, विशाल जिनालय में दिव्य दर्शन पूजन विधान कर मिल सके
लेकिन अब तो आचार्यश्री ने अब तो महाराष्ट्र की गेल पकड़ लइ…. आचार्यश्री तो भोले बाबा है बरसों बाद उनका विहार पथ बदला है और महाराष्ट्र के दर्जनों अतिशय तीर्थ आचार्यश्री के आगमन में और जीर्णोद्धार की प्रतीक्षा में है

वहीं महाराष्ट्र कर्नाटक की सीमा में बसा, सदलगा पिछले 56 वर्षों गुरुचरणों की आस का चिरप्यासा चातक वत बड़ी आशा से टकटकी लगाए बैठा है कि गुरुदेव सदलगा को तारने सदलगा की ओर भी निहारेंगे….

ओ सब तो सब ठीक है…. महाराष्ट्र में तो गुरुदेव का आज ही प्रवेश लेकिन बेचारा सागर उदास है, बीना बारह के गौवंश पुनः गुरुचरणों की प्रतीक्षा में अनमने बैठे है, वहीं चन्द्रगिरि, डोंगरगढ की पहाड़ियां, प्रतिभास्थली की बहने, छात्राएं और डोंगरगढ के हथकरघा में हाथ बटाने वाली सैकड़ों अजैन बहने आज से ही गुरुचरणों के आगमन के थाप की बाट जोहने लगी है इस भावना से कि हमर पहुना, हमर भगवान, हमर आचार्यश्री, हमर कोती हमर डहार जल्दी आही….
• राजेश जैन भिलाई •