क्या कोविड वैक्सीन ही कोरोना का इलाज है?

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व्हाट्सअप पर घूमते मैसेजों में तो रोजाना आप देख रहे हैं कि भारत में कोरोना वैक्सीन की तैयारियां कर ली गई हैं, लेकिन क्या सचमुच कोविड वैक्सीन कोरोना का 100 प्रतिशत इलाज है? डॉक्टरों से राय लेंगे तो हकीकत इससे परे हैं। कोई पूछें कि कोरोना वैक्सीन हमें लगवानी चाहिए या नहीं? इसका जवाब डॉक्टरों से पूछेंगे तो आपको पता चलेगा कि जिन्हें कोरोना से मृत्यु होने का भय है, वे इसे जरूर लगवायें, लेकिन यह शत् प्रतिशत इलाज नहीं है और अगर शत प्रतिशत इलाज चाहिए तो आप मॉस्क, 2 मीटर की सोशल डिस्टेंसिंग और हैंड हाइजीन का ध्यान रखेंगे तो आप कोरोना से निश्चित रूप से बचे रहेंगे। टूृ-व्हीलर पर आपको हेलमेट पहनना अनिवार्य है, वह इसलिये कि आप हैड इंजरी से बचे रहेंगे लेकिन आप अगर असावधानी और तेज रफ्तार से चलाएंगे तो आपको चोट से वह हेलमेट नहीं बचा सकता। कोविड वैक्सीन उस हेलमेट की तरह ही है। उसी प्रकार कोविड की वैक्सीन, आपको कोविड से होने वाली मौत से तो बचा सकता है, लेकिन उससे होने वाले अन्य दुष्परिणामों से नहीं।

हर दवा के दुष्परिणाम साथ में मिलते हैं लेकिन डॉक्टर यह आंकलन करता है कि आपको दवाई से होने वाले फायदे अधिक हैं तो वह उसका आप पर इस्तेमाल करता है। हर एलोपैथी दवाई का यही फार्मूला है। हाल ही में मुझे दुबाई जाने का मौका मिला तो वहां देखा कि बाजारों और सड़कों पर सभी मॉस्क लगा रहे थे, चाहे वह खरीदार हो या दुकानदार सभी जगह मॉस्क और हैंड सेनेटाइजेशन का कड़ाई से पालन किया जा रहा था लेकिन हम दिल्ली के किभी भी बाजार में चले जाएं, यहां तो मॉस्क अधिकतर नदारद नजर आते हैं। अगर हम मॉस्क, सोशल डिस्टेंसिंग और हैंड सेनेटाइजेशन यानि हाईजीन का ध्यान रखें तो मेरे ख्याल से कोविड का इससे बेहतर इलाज नहीं हो सकता।

प्रशासन को जनता को इन चीजों की तरफ जागरूक करने के अलावा कड़ाई से पालन कराना चाहिए। उसके लिये रोजाना बाजारों में नियमित जांच और दोषी पाये जाने पर चालाना काटना। इसके लिये अलग से स्टाफ की जरूरत भी नहीं है। बाजारों में पुलिस का बीट स्टॉफ यह कार्य कर सकता है और दुकानों में प्रवेश से पहले हैंड सेनेटाइजेशन और मास्क ढंग से लगा हो, इसको दुकानदार पुख्ता कर सकता है। यानि हम इतना भी करेंगे तो कोरोना से बचे रहेंगे। यह हमारी स्वयं की और प्रशासन की ढिलाई है। हम कोरोना वैक्सीन के लिये तो चिंतित है, लेकिन जो उसका मूलभूत आवश्यक इलाज है, उसे अपनाने को राजी नहीं।
– प्रवीन जैन, सिटी संपादक