आ गया अब उनका मोक्ष कल्याणक, जिनके काल में अंतिम सातवीं बार धर्म का विच्छेद हुआ और उसके बाद धर्म अविरल चलता रहा है

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1 जून 2022/ जयेष्ठ शुक्ल दोज़ /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

15वे तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी का जब आयु कर्म एक माह शेष रह गया, तो वह पहुंच गए श्री सम्मेद शिखरजी और वहां पर जेष्ठ शुक्ल चतुर्थी, जो इस वर्ष 3 जून को है ,वहां से सुदत्त वर कूट से अपराह्न काल की प्रत्यूष वेला में, 801 महामुनिराजों के साथ एक समय में सिद्धालय चले गए ।

इस सुदत्तवर कूट से 29 कोड़ा कोड़ी 19 करोड़ 9 लाख 9 हज़ार 795 महामुनिराज भी सिद्ध भये हैं । कहा जाता है कि इस कूट की निर्मल भावो से वंदना करने से, एक करोड़ उपवास का फल मिलता है। तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी का तीर्थ प्रवर्तन काल तीन सागर दो लाख 50 हजार वर्ष में एक पल्य कम रहा।

वहीं आपके तीर्थ प्रवर्तन काल में एक पल्य तक धर्म का विच्छेद रहा । यह चतुर्थ काल में सातवीं बार ऐसा हुआ इसके बाद धर्म का विच्छेद नहीं हुआ और लगातार धर्म की अविरल धारा चल रही है, जो पंचम काल के अंतिम समय तक चलेगी ।

बोलिए, तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी के मोक्ष कल्याणक की जय जय जय।