दुराचार पीड़ित के साथ परिवार के साथ समाज का यह कैसा न्याय, चिंतन करें हम , सब किस दिशा में जा रहे हम और आप

0
534

30 अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा अमावस /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
राजस्थान के बड़े अखबार , राजस्थान पत्रिका की माने, तो 26 अप्रैल को हुई जयसवाल समाज की पंचायत में, उस पीड़ित परिवार पर, जिसके साथ, एक कथित संत ने गंदी हरकत की। उसी का समाज ने सामाजिक बहिष्कार कर दिया , बाद में स्पष्ट किया कि यह सामाजिक बहिष्कार नहीं , बल्कि असहयोग आजीवन करेगा समाज, उनके साथ। कहा गया कि संत पर , इस तरह के आरोप लगाना , बिल्कुल गलत है। बस यही सोचना होगा कि किस दिशा में जा रहा है हमारा समाज और हम।

हां , इतना जरूर है कि चैनल महालक्ष्मी , उस हर कदम का घोर विरोध करता है जिसमें किसी के साथ भी मारपीट की जाए, हां समझाने और रंगे हाथों पकड़ना, यह आपका अधिकार है , पर मार पिटाई कभी नहीं, किसी के साथ नहीं। परंतु समाज द्वारा, पीड़ित परिवार के खिलाफ, यह कदम हमारे समाज के एक वर्ग की किस सोच को इंगित करता है।

दिगंबर जयसवाल जैन समाज ने एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए, उस पीड़ित परिवार का, असहयोग आजीवन करने के निर्णय से पहले, शिकायतकर्ता को , यानी पीड़ित परिवार में पिता को , उक्त प्रकरण में माफी मांगने के लिए कहा गया था।

लेकिन उस पिता ने, इतनी बड़ी गलत हरकत पर, माफी मांगने से इंकार कर दिया और अपनी बात की सत्यता पर अड़े रहे , बस इस पर जयसवाल समाज ने एक पक्षीय कार्यवाही करते हुए , उनके परिवार का आजीवन असहयोग करने का निर्णय ले लिया । इस निर्णय के बाद, कहते हैं कि पिता का मन टूट गया। अवसाद में आ गए और जब परिवार के लोग , उन्हें दिल्ली लेकर जा रहे थे, इस दौरान उनकी तबीयत बिगड़ गई और फिर वापस अजमेर लाकर, एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया ।

दूसरे वर्ग का यह कहना है कि सचमुच , आज समाज में ,जंगलराज हो गया है। सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि सामाजिक बहिष्कार करने से पहले, पीड़ित पक्ष का और उस घटना की पूरी जानकारी लेनी चाहिए थी।

केवल किसी गलत हरकत को ढकने से, हम कोई सही निर्णय नहीं कर सकते । अगर गलत हुआ है, तो निश्चय ही , उचित कार्यवाही ,उचित लोगों द्वारा, की जानी चाहिए । यह विद्वानों का भी कहना है कि इस तरह की गंदी हरकत पर , पुनः तुरंत दीक्षा देने की बात कभी नहीं करनी चाहिए । यह चतुर्विध संघ के प्रति , कभी सही निर्णय नहीं हो सकता ।

अगर कुछ पिछला अतीत देखें, तो ऐसा सामने, आने लगा है कि गुरु ही , अपने दोषी शिष्य की गलत हरकत को , देख कर, उसे पुनः दीक्षा देने लगते हैं। इससे, हमारे शेष ,सभी संत , जो सही चर्या कर रहे हैं, उनके प्रति भी, यह कदम निश्चय ही बहुत गलत लगता है।

आज समाज को चिंतन करना चाहिए कि हम किस दिशा में जा रहे हैं और क्यों भटक रहे हैं। अंधभक्ति और केवल आंख बंद कर एक वर्ग द्वारा, गलत को सही ठहराना भी, पूरे समाज के हित में नहीं कहा जा सकता।