आदिनाथ भगवान की मोक्ष स्थली -#अष्टापद अर्थात आठ-पद (पद = सीढ़ी) रूपी पर्वत- स्थान इतना दिव्य, रहस्यपूर्ण ओर अलौकिक

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28 अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा त्रयोदिशि /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

अब जिस महान जैन तीर्थक्षेत्र की भाववन्दना हम करने वाले है, वह स्थान इतना दिव्य, रहस्यपूर्ण ओर अलौकिक है, जिसके बारे में देश-विदेश के खोजकर्ता, वैज्ञानिकों सब बिल्कुल अंजान है, व कई वर्षों से शोधकर्ता आदि निरंतर जानकारी ढूंढने में लगे हैं । किंतु सब असफल रहे है ।

हम बात कर रहे हैं, देवाधिदेव श्री १००८ आदिनाथ भगवान की मोक्ष स्थली रही, अष्टापद, कैलाश पर्वत की….. आगे जहां

इसकी भाव वंदना में हम सब भगवान ऋषभदेव के मोक्षगमन के पश्चात्, उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती द्वारा बनवाई गई त्रिकाल चौबीसी (भूत, वर्तमान एवं भविष्यत्काल संबंधी चौबीसों तीर्थंकर) की बहत्तर रत्नप्रतिमाएँ बनवाकर बहत्तर जिनमंदिरों में विराजमान की थीं, उन प्रतिमाओं के स्वरूप, ऊंचाई (अवगाहना) ओर चक्रवर्ती सगर द्वारा कैसे पर्वत के चारो तरफ खाई खोदकर जिनालयो को सुरक्षित किया गया, सब कुछ शास्त्रों के आधार से जानेंगे ।

उत्तरपुराण में पृष्ठ १० पर आचार्य श्री गुणभद्र ने सगर चक्रवर्ती द्वारा अपने पुत्रों से कैलाशपर्वत के चारों ओर खाई खोदने का वर्णन करते हुए कहा है-

राज्ञाप्याज्ञापिता यूयं कैलासे भरतेशिना। गृहा: कृता महारत्नैश्चतुर्विंशतिरर्हताम् ।।१०७।।

तेषां गङ्गां प्रकुर्वीध्वं परिखां परितो गिरिम्। इति तेऽपि तथा कुर्वन् दण्डरत्नेन सत्वरम् ।।१०८।।

अष्टापद अर्थात आठ-पद (पद = सीढ़ी) रूपी पर्वत