28 अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा त्रयोदिशि /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
जैन जगत आर्थिक,सामाजिक व राजनैतिक सशक्तिकरण की बजाय बर्बादीकरण पर ही क्यों टिका हैं ?
कुछ समय से पहली बार मुझे ख़ुशी हुई और आत्मा में संतोष मिला हैं कि जैन समाज में अल्पसंख्यक फ़ायदे के साथ आर्थिक व राजनीति मे समाज को मज़बूत बनाने को लेकर अब कई जगहों से कोई सही चिंतन व गम्भीर मन्थन शुरू हुआ हैं.
हमारा दुर्भाग्य हैं कि समाज के उत्थान,प्रगति,उन्नति, उच्चशिक्षा,अच्छी नौकरी,अच्छे व उच्च शिक्षा से लेकर प्रशिक्षण के अच्छे अच्छे इंस्टिट्यूशन और सामूहिक सामाजिक ऊर्जा की चेतना व जैनों की राजनीतिक पकड़,भागीदारी व आर्थिक ताक़त की सामूहिक शक्ति के जागरण की जगह हमारे यहाँ सिर्फ़ पूरे वर्ष भर धार्मिक आधार पर तीन काम ही हो रहे हैं:
पहला बड़े चौमसों के आयोजन व उन पर विशालकाय खर्चा,फिर वर्ष भर में जगह जगह नए मंदिरों व नए धर्म स्थलों के निर्माण के बाद उनके उद्घाटनों के भव्य आयोजनो में करोड़ों का व्यव तथा खर्चीले उपद्यान तप व अन्य प्रकार के तपों व तपस्या के दिखावटी अतिरंजित बेशुमार खर्चीले कार्यक्रम, अखातीज के नाम पर अत्यधिक धन वैभव की बर्बादी से भरे आयोजन, देश भर में सैंकड़ों राजशाही ठाठबाट के लाखों लाख खर्च वाली भव्याति भव्य दीक्षाओं के धमाल,तीर्थ यात्राएँ,अदभुत खर्चीली निनयIणु फेरी, सैंकड़ों जगह राष्ट्रीय स्वघोषित संत के बनते पहलनुमा धामों के विशालकाय खर्चीले बजट की पूर्ति और
फिर वर्ष भर शादियों की गलाकाट प्रतिस्पर्धा से भरे वैभवपूर्ण सगाई,मामेरा,लेडीज़ संगीत की फ़ुअडता,निर्लज्ज तमाशे भरी शादियाँ व अन्य दूषित सामाजिक रीतिरिवाजों के नाम पर अतरंजित कुरीतियों,विकृतियों व विषमताओं के दिखावे की अय्यासी की बेशर्म खुमारी के अंतःहीन बोझ तले हम इतने अखंड डूबे रहते हैं कि समाज ने तो अब मितव्ययिता,अपरिग्रहवाद,सामाजिक लाज़ व मर्यादा को जैसे पलीता लगा डाला हैं
हमारे मंदिरों में करोड़ों रुपए देव धर्म खाते के नाम पर समाज के अगिवानों के घरों व व्यापार में समृद्धियाँ व सम्पन्नता बढ़ा रहे,मग़र उनका समाज के किसी तरह के हित में प्रयोग नही हो रहा हैं
कुल मिलाकर समाज का विकास व समाज के आसन्न संकट की बजाय धर्म को तो धन की चौखट और धर्म के नायकों और धनवानों के स्वार्थी गठजोड़ ने धर्म व समाज दोनों को अपनी गिरफ़्त में इस तरह जकड़ लिया हैं और समवेगी व सामूहिक ऊर्जा व शक्ति को इस कदर निगल लिया हैं कि न हम हमारे समाज को सही दीशा दे पा रहे,न समाज अपने संकटों से बाहर आ पा रहा हैं,दिन प्रतिदिन समाज कमजोर, गरीब व शक्तिहीन बना नाना प्रकार की त्रासदियों का शिकार हो रहा हैं
और हमारा राजनीतिक वजूद का वर्चस्व तो 2014 के बाद न केवल ख़त्म हो गया बल्कि उसका दाह संस्कार हो चूका हैं,हालत इतने दयनीय हो गए हैं कि भाजपा को जैन नब्बे प्रतिशत बोट देकर व संख्या मे एक करोड़ होते हुए भी आज संसद में एक जैन सांसद नही हैं,वहीं मात्र पाँच लाख संख्या वाले माहेश्वरी समाज के आठ सांसद,दो केंद्रीय मंत्री व लोकसभा का अध्यक्ष है,अग्रवाल समाज जो संख्या में हम से कम हैं, उसके लोकसभा व राज्यसभा में दस सांसद हैं,चार केंद्र में मंत्री हैं और
ये बाते हमे विचार करने योग्य है इस लेख से किसी का मन दुख हुआ हो तो मिच्छामि दुक्कडम
जिनआज्ञा के विरुद्घ कुछ लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडम
अंकित जैन , अखिल भारतीय जैन महासंघ मोब.. 9340101551
एक सोशल मीडिया पोस्ट से