झारखण्ड राजकीय अतिथि मुनि श्री विशल्यसागर जी का इतिहासिक पंचकल्याणक हेतु सराक क्षेत्र में हुआ भव्य मंगल प्रवेश

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24 अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा नवमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
तमाड़ पंचकल्याणक . मुनि श्री के बढ़ते कदम, प. पू . मुनि श्री विशल्यसागर जी गुरुदेव का भव्य मंगल प्रवेश सराकक्षेत्र चौकाहातु नगर से तमाड़ में पू. गुरुदेव के सन्निध्य में भव्य इतिहासिक पंचकल्याणक हेतु मंगल प्रवेश 24 अप्रैल 2022 को हुआ।

इसी बीच पू. गुरुदेव की मंगल वाणी सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ पू . गुरुदेव ने अपने उद्बोधन में कहा कि
‘जिओ और जीने दो ‘ का दिव्य संदेश अहिंसा की प्रतिध्वनि है।अतः अहिसा जैनाचार का प्राण बन गया है।अहिंसा की पावनता को अपनाकर ही हम अध्यात्म की गहराई में उतर सकते हैं।

अहिंसा का मूल आत्म – साम्य की भावना है।भगवान् महावीर कहते हैं कि तत्त्वतः सभी आत्माएँ समान हैं।सभी जीवों में एक सी आत्मा का वास है।सुख – दुःख का अनुभव प्रत्येक प्राणी को होता है।जन्म – मरण की प्रतीति सब करते हैं।जिस प्रकार तुम्हें जीवन प्रिय है मरण अप्रिय है,सुख प्रिय है,दुःख अप्रिय है,अनुकूलता प्रिय है प्रतिकूलता अप्रिय है,उसी प्रकार संसार के अन्य प्राणियों को भी सुख आदि प्रिय हैं और दुःख आदि अप्रिय हैं।सभी जीवन जीना चाहते हैं,मरणा कोई नहीं चाहता ।अतः आत्मसत्ता के आधार पर अपने से भिन्न जगत के अन्य प्राणियों को भी अपने समान समझकर किसी भी जीव की हिंसा मत करो।

झारखण्ड राजकीय अतिथि श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी गुरुदेव ने अपने उद्बोधन में कहा कि अहिंसात्मक भावना के विकास के लिए सह- अस्तित्व की भावना का विकास जरूरी है।जब तक मनुष्य जगत के अन्य प्राणियों को भी अपने समान नहीं मानता,उनकी आत्मसत्ता को अपनी आत्मा के समान स्वीकार नहीं करता ,तब तक वह अहिंसक नहीं बन सकता।जगत के अन्य प्राणी भी तुम्हारे समान हैं।अपनी दृष्टि को व्यापक बताकर देखों,सभी में तुम्हें अपना ही प्रतिबिम्ब नजर आयेगा।

जब जगत् के अन्य प्राणियों में हमें हमारा ही प्रतिबिम्ब दिखाई देने लगेगा तो हिंसा की भावना अपने आप ही दूर हो जायेगी,क्योंकि कोई भी व्यक्ति कभी स्वयं की हिंसा नहीं करना चाहता। पू. गुरुदेव के दर्शन हेतु जन शैलाभ उमड़ पड़ा ,जिसमें सभी ने मुनि श्री की मंगल आरती,पाद प्रक्षालन किया।