जब बार-बार शिथिलाचार की लक्ष्मण रेखा को पार कर , दुराचार के दलदल में पैर रखे जाते हैं , तो कीचड़ सब पर ही उछलती है, समाज पर दाग लगता है

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23 अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा अष्टमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

कलम के सिपाहियों के लिए
छोटी सी हम जैनों की गिनती और बहुत बड़ा सा बंटवारा , संतों में , पंथों में , विद्वानों में, मंदिरों में , संगठनों में और हम पत्रकारों में भी, आज जब बार-बार शिथिलाचार की लक्ष्मण रेखा को पार कर, दुराचार के दलदल में पैर रखे जाते हैं , तो कीचड़ सब पर ही उछलती है, समाज पर दाग लगता है।

पंच परमेष्ठी सदा से वंदनीय रही है और वंदनीय रहेगी । जैन संतो की तपस्या की पराकाष्ठा में, 24 कैरेट स्वर्ण में, खोट कभी स्वीकार्य नहीं होगा। पिछले कुछ समय में , लगातार आ रही हमारे वंदनीय संतो में , कुछ शर्मसार घटनाओं ने समाज को शर्मसार कर दिया है। कलम के सिपाही ऐसे समय में ,अपने कर्तव्य के प्रति अधिक सजग रहें और संकल्पित हो , आज समाज उनसे यह जरूर चाहेगा।

अगर हम सब कलम के सिपाही, आज अपनी छोटी मोटी बातों को छोड़कर, एक साथ, इस बुराई को मिटाने के लिए, आगे आने को तैयार हैं, तो आइए ,एक एक दीपक सब जलाएं और दुराचार रूपी अंधकार को जड़ से मिटाएं। सिर्फ यह कह देना , ऐसा तो पहले भी होता रहा है, तीर्थंकर नहीं रोक पाए । बड़े-बड़े संत नहीं रोक पाए , तो हम क्या कर सकते हैं , तो यह हमारी भूल होगी। जो काम कलम कर सकती है , वह तलवार नहीं और हाथी के भी मद को रोकने की ताकत एक चींटी में भी होती है।

आइए मिलकर संकल्प लें कि हम अपनी कलम का कर्तव्य निभाएंगे, समाज को जगायेंगे। पत्रकार को कोई निर्णय लेने का अधिकार तो नहीं, पर गलत और सही बोलने का उसे पूरा अधिकार है । कोई त्यागी, अगर ऐसे दुराचार आदि में संलिप्त पाया जाता है, तो तुरंत समाज को जागृत करिए ।अंध भक्तों के बीच भी सही आवाज उठाइए । समाज को जगाए कि केवल बिहार कराने से बुराई नहीं मिटती। दोबारा दीक्षा दी देने पर कलम का प्रयोग करें, आवाज उठाएं कि कड़ी परीक्षा की राह से गुजर कर ही कोई निर्णय किया जाए।

मुनि संघ में के साथ आर्यिका या ब्रह्मचारिणी नहीं होनी चाहिए ।अगर अभी तक हैं, उन से विनम्र अनुरोध करें और भविष्य के लिए इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।

दोष सार्वजनिक रूप से प्रकट होने पर, उस के पक्ष में तत्काल लिखना बंद कर देना चाहिए तथा उनके कार्यक्रमों का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए।

साधु और आर्यिका का एक ही जगह ठहराव नहीं होना चाहिए । साधु के पास अकेली आर्यिका या ब्रह्मचारिणी का प्रवेश नहीं होना चाहिए। और अकेले श्रावक का भी आर्यिका के पास प्रवेश नहीं हो, इस बारे में कलम का उपयोग सदा करना चाहिए।
कहीं भी गलत दिखाई देता है तो उसको ढकने की बजाए ,अपने माध्यम से समाज को जरूर जानकारी देनी चाहिए , जिसका उद्देश्य बुराई को हटाने की ओर होना चाहिए।

मठों के बनने पर तत्काल रोक लगे, इसके प्रयास करने चाहिए, अपनी कलम से और नए मठों पर तत्काल रोक लगे । जो बन भी गए हैं उनको समाज के मंदिर में बदलने के लिए अपनी कलम से प्रेरित करना चाहिए।

दीक्षा के समय ही यह सामाजिक संकल्प लेना चाहिए कि मैं एकल बिहार नहीं करूंगा या करूंगी, और इस संकल्प के लिए समाज को जागृत अपनी कलम से करना चाहिए।

कर्मयोगी (डॉ.) सुरेन्द्रकुमार जैन महामन्त्री-अ.भा.दि.जैन विद्वत्परिषद् के साहसिक कदम का हम समर्थन करते हैं

आइए, हम सब एक मंच पर इसके प्रति कृत संकल्प हो और इसमें कोई छोटा बड़ा नहीं तथा किसी संत पंथवाद को बढ़ावा भी नहीं दें। हमारे संत पूजनीय वंदनीय हैं, जो खरे सोने के समान है ।

हृदय से क्षमा ,
शरद जैन, चैनल महालक्ष्मी