कल्प काल-विरह काल-हुण्डावसर्पिणी काल – कैसे घटता बढ़ता कद और उम्र

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5 ऐरावत और 5 भरत क्षेत्र में छह काल का परिवर्तन होते रहता है।
पहला काल सुखमा सुखमा में उत्तम भोगभूमि की रचना होती है। 3कोस की ऊंचाई 3 पलय की आयु होती है।
दूसरे सुखमा काल में मध्यम भोगभूमि में 2 कोस की ऊंचाई 2 पलय् की आयु होती है।
तीसरे सुखमा दुःखम् काल में जघन्य भोगभूमि में 1 कोस की ऊंचाई और 1 पलय की आयु होती है।
चौथे दुःखम् सुखम् काल में कर्मभूमि का प्रारम्भ होता है। अधिकतम ऊंचाई 525 धनुष और 1 कोटि पूर्व वर्ष की अधिकतम आयु होती है। इस काल में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पांचवे दुःखम् काल में 120 वर्ष की अधिकतम आयु होती है और साढे 3 हाथ की शरीर की ऊंचाई होती है। पंचम काल के अंत तक धर्म रहेगा।
छटवे दुःखम् दुःखम् काल में 20 वर्ष की आयु और 1 हाथ का शरीर होता है धर्म का अभाव होता है।
इन छहों कालों का प्रारम्भ सावन वदी एकम का होता है।
शरीर की ऊंचाई आयु बल ज्ञान सभी घटते जाता है इसीलिए इसे अवसर्पिणी काल कहते हैं।
एक अवसर्पिणी काल 10 कोडकोडि सागर का होता है।
1ला काल 4 कोडकोडि सागर
2रा काल 3 कोडकोडि सागर
3 रा काल 2 कोडकोडि सागर
4था काल 1 कोडकोडि सागर-42,000वर्ष
5वा काल 21,000 वर्ष
6वा काल 21,000 वर्ष
अवसर्पिणी के छटवे काल के समाप्त होने के बाद उत्सर्पिणी का पहला यानि पुनः छटवा काल आता है।
अवसर्पिणी काल भी 10 कोडकोडि सागर का होता है।
1 अवसर्पिणी 1 उत्सीपिणी इन दोनों को मिलाकर 20 कोडकोडि सागर का 1 कल्प काल होता है।
करोड़ो कल्प काल बीतने के बाद जिनवाणी माता की बात सुनने को मिलती है यानि सच्चे देव गुरु शास्त्र का समागम मिलता है।
अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के चौथे काल में 1 चौबीसी होती है।
149 चौबीसी बीतने पर एक हुंडा अवसर्पिणी काल आता है जो अभी वर्तमान में चल रहा है। इसमें कुछ सामान्य नियम विरुद्ध घटनाएं होती हैं।जैसे भरत चक्रवर्ती का मान खण्डित हुआ, आदिनाथ तीर्थंकर की पुत्रियां हुयी आदि।
149 हुंडावस्र्पिणी बीतने पर 1 विरह काल आता है।
नियम है की मनुष्य लोक अढ़ाई द्वीप से 6 माह 8 समय में 608 जीव मोक्ष जाते हैं किन्तु विरह काल में 6 माह तक कही कोई मोक्ष नही जाता। फिर बचे हुए 8 समय में 608 जीव मोक्ष जाकर नियम बना रहता है।
1 समय में एक साथ अधिकतम 108 जीव मोक्ष जा सकते हैं जो विरह काल के बाद होता है।
— नन्दन जैन