श्रीमहावीरजी में अभूतपूर्व दृश्य, श्रीजी का अभिषेक नदी तट पर, हर कोई हर्षित- मीणा समाज रथ लेकर गया और गुर्जर समाज रथ लेकर लौटा

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18अप्रैल 2022/ बैसाख कृष्णा द्वितीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

रविवार 17 अप्रैल हिंडौन सिटी में रविवार श्री महावीरजी आकर्षण का केंद्र रहा। जब 2 साल बाद, देश भर से आए 25000 से ज्यादा यात्रियों के बीच, रथ यात्रा का महोत्सव, धूप की तपन के सामने भी पूरे जोश से निकला। श्री महावीरजी में निकले इस मेले में दोपहर 2:00 बजे रथ यात्रा निकाली गई, जब सूर्य देव अपने पूरे ताप से अपनी स्वर्णिम रश्मिया बिखेर रहे थे।

आसमान जियो और जीने दो के संदेश से गुंजायमान हो रहा था और चमकते दमकते रथ के ऊपर श्री जी विराजमान, जिनकी झलक पाने के लिए श्री महावीर जी की नगरी में आस्था का सैलाब उमड़ गया था । यह रथयात्रा एक किलोमीटर के लगभग लंबाई पार कर चुकी थी और चिलचिलाती धूप की तपन की परवाह किसी को ना थी ।गगनभेदी जयकारों के बीच चंदनपुर वाले बाबा के दर्शन हेतु, धरा ही नहीं, छते भी पूरी तरह अटी पड़ी थी। स्वर्ण मंडित रथ ,एरावत हाथी की अगुवाई में, मंदिर कटले के मुख्य द्वार से जैसे ही बाहर निकला , आकाश पूरा श्री महावीरजी के जयकारों से गुंजायमान हो गया।

रथ के आगे हवा में लाठियों को उछाल कर नाचते ग्रामीण युवाओं की भीड़ और जैन और अजैनों की आस्था का अदभुत संगम, जैसा यहां दिखता है , ऐसा बहुत कम देखने में आता है ।लगभग 2:30 बजे श्रीजी की प्रतिमा को पालकी में विराजित कर ,पंडाल में सजे नवीन रथ तक ले जाया गया । जहां से रीति के अनुसार प्रतिमा को रथ में विराजित किया गया, 2 साल बाद इस कस्बे के 30 से ज्यादा होटल और धर्मशाला पूरी तरह फुल थी।

इस वार्षिक मेले का मुख्य आकर्षण श्री जी की रथ यात्रा में 2 जोड़ी बैल लगते हैं, जो इस बार हिंडौन के निकट श्यामपुर मुंद्री गांव से मंगाए गए थे । इस जोड़ी के लिए मीना बंधु को ₹4200 दिए गए ।कहा जाता है कि महावीर स्वामी की मूलनायक प्रतिमा 700 वर्ष पूर्व चंदनपुर गांव में टीले से निकली थी और इसी कारण इन्हें चंदनपुर वाले बाबा और टीले वाले बाबा के रूप से भी लोकप्रिय हैं । आज भी ग्रामीण लोग दंडवत परिक्रमा करते हुए श्री महावीर स्वामी के इस मंदिर में इस अतिशय कारी प्रतिमा का दर्शन करते हैं ।

1 किलोमीटर लंबा जुलूस, जिसे 800 मीटर दूर गंभीर नदी के तट पहुंचने में डेढ़ घंटा लग गया और श्री जी की प्रतिमा को नदी तट पर अभिषेक कराने की वही पुरानी परंपरा निभाई गई। पहले मूल मूंगे वाली प्रतिमा का ही अभिषेक किया जाता था, जिसे 1996 में बंद कर दिया गया , फिर नदी तट पर धातु प्रतिमा का अभिषेक शुरू हो गया। इस रविवार को भी मीणा समाज रथ लेकर गया और गुर्जर समाज रथ लेकर लौटा। दोनों समाजों में पिछले 108 साल से ,1914 से यही परंपरा निभाई जाती आ रही है।