पहले मांसाहार पर ही जीवन यापन करने वाला संयम पालन कर देव-तीर्थंकर बनता है, आज शाकाहारी हिंसा-मांसाहारी बनकर कहां जायेगा, कल्पनी करिये

0
1120

8 अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल सप्तमी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
असंख्य भवों के बाद प्रथम तीर्थंकर का वही पोता मरीचि अपने कर्मों के फल पाता, इस भारत देश में गंगा तट के एक विकट वन में सिंह बना। रोज की तरह भूख लगने पर, हिमगिरि पर्वत पर एक हिरण का शिकार कर, उसका नोंच-नोंच कर भक्षण कर रहा था कि उसी समय आकाश मार्ग से गुजरते दो चारण ऋद्धिधारी मुनि – ज्येष्ठ और अमित तेज, उस दृश्य को देख ठिठक गये, पूर्व वचनों का स्मरण कर उसके सामने एक शिला पर बैठ गये।

दो मुनिराजों को देख वनराज भी ठिठक गया। अब उसके दांतों ने एक क्षण उस हिरण को जैसे नोंचने से रोक दिया। नेत्र उस मांस खाने की बजाय उन दो मुनिराजों को जैसे निहारने को मजबूर हो रहे थे। अमित तेज मुनि ने आशीर्वाद स्वरूप जैसे ही हाथ उठाया, वह जंगल का राजा जैसे समर्पित हो गया। अब वह उनके सामने ठिठक कर बैठ गया और जैसे उन वचनों को श्रवण करने की एक अजीब भूख सताने लगी।

मुनिराज बोले, ‘हे मृगराज! तू मेरे वचनों को ध्यान देकर श्रवण कर। जब तू त्रिपृष्ठ नरेश के रूप में था, तब धर्मदान की उपेक्षा कर हिंसादि कार्य किये, मिथ्या मार्ग बढ़ाया, उस पाप से यू ही नीच गतियों में भटकता रहा।’ सब पूर्व भवों का वृतांत बताते हुए कहा कि मिथ्यात्व को हलाहल समझ कर त्याग दो और सम्यक्त्व को ग्रहण करो।

जिस जीव का जीवन ही, हिंसा करके मांस भक्षण करके चलता हो, जब वह जीव भविष्य में उच्च कुल, उत्तम भव के लिये उसे छोड़ देता है, वही आज मनुष्य जिसकी बनावट ही शाकाहारी, अहिंसा की है, जब वह हिंसा, मांसाहारी होगा तो कितने भव तक नीच गति में, निकृष्ट कुल में जन्म लेगा, इसकी कल्पना तो हम कर रही सकते हैं। जानते तो होंगे ही आप वह मांसाहारी सिंह शिकार-मांसाहार छोड़, संयम व्रत से मृत्यु प्राप्त कर प्रथम स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव बनता, आगे चलकर 24वां तीर्थंकर बनता है, सोचिये हम किस दिशा में जा रहे हैं।