3 अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल द्वितीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
मध्यप्रदेश में वैसे प्रतिवर्ष कहीं न कहीं गांव नगर या तीर्थ क्षेत्र में जिनालयों का जीर्णोद्धार या नवनिर्माण अनवरत् चालू ही रहता है ।
मध्यप्रदेश में श्रमण संस्कृति का इतिहास बहुत प्राचीन है । विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के मंदिरों की श्रंखला में भी बहुत सुंदर व प्राचीन जिनालयों का होना इस बात का प्रमाण है कि श्रमण संस्कृति कितनी वर्षों से यहां पर विघमान है ग्वालियर का गोपाचल पर्वत दतिया के पास सोनागिर क्षेत्र जबलपुर के पास पिसनहारी टीकमगढ के पास आहार व पपौरा जी इंदौर के पास गोमटगिरी इंदौर बडवानी ऊन बावनगजा भोपाल के पास भक्तामर रचा लिखा गया मुक्तागिरी बहोरीबंद कोनी जी चंदेरी जैसे प्राचीन शहर के पास मंदारगिरी द्रोणागिरी नैनागिरी बहोरीबंद व बुंदेलखंड का सबसे विख्यात कुंडलपुर जैसे और भी अनेकानेक सिध्द व अतिशय क्षेत्र की बहुलता है इस आधार पर मध्यप्रदेश में जैन धर्म के वैभवशाली इतिहास को जानने के लिए पर्याप्त है ।
इतना वैभवशाली व गर्वोनित करने वाले जैन धर्म के इतिहास को यहीं विराम नहीं लग जाता है बल्कि कुंडलपुर अमरकंटक दयोदय नेमावर आदि अन्य स्थलों पर बेहद ही अद्भुत अद्वितीय अतुलनीय जिनालयो का निर्माण हो रहा है जैनियों की दानवीरता के कारण मध्यप्रदेश में जैन धर्म का स्वर्णिम युग कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा । इन सभी के पश्चात कभी कभी कुछ जिनबिबों का भू से प्रगट होना भी हो जाता है प्राचीन समय में जब इस्लामिक आक्रान्ताओं का शासन था तो भय के कारण श्रमण संस्कृति का प्रसार व प्रभावना कम होती गई मुगलों ने हज़ारों जिनालयों व हिंदुओं के मंदिरों का सर्वनाश करने में कोई कसर नहीं की मूर्तियों को खंडित करना उनका काम आम हो गया था ।
इस वजह से मूर्तियों को भू में छिपा दिया जाता था । आज वही प्रतिमा यदा-कदा भू से प्रगट हो जाती है कभी कभी खंडित अवस्था में मिलती हैं जिसे जिनागम के आधार पर पूजा नहीं जा सकता है ।ऐसी प्रतिमाएं शासन के संरक्षण में संग्रहालय में स्थान पाती हैं व स्थानीय लोगों द्वारा फिर भी ऐसी मूर्तियों को देवतुल्य मानकर पूजा अर्चना की जाती है । ऐसी ही यह मूर्ति मध्यप्रदेश के सिवनी जिले में केवलारी विकासखंड में सरकरी संरक्षण में है पर स्थानीय नागरिकों द्वारा खंडित होने के पश्चात भी बहुत मान्यता दी जाती है इस गांव का नाम छोटा घंसौर है पर अब नागाबाबा घंसौर के नाम से जाना जाने लगा है ।
खंडित अवस्था के कारण जैन धर्मावलंबी पूजते नहीं हैं परन्तु अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा इसे नागाबाबा कहकर पूजना यथेष्ट व श्रेयस्कर है। कभी कीजिए इन पूर्व जिनबिंबों के दर्शन
आशीष सिंघई पिंडरई मध्यप्रदेश