अधिकांश जीवन हिंसा करने वाला, मांस खाने वाला – कैसे बन जाता महाऋद्धिधारी देव?

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3 अप्रैल 2022//चैत्र शुक्ल द्वितीया /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

‘स्वामिन्! संसार के कल्याणक के उद्देश्य से यह वन देवता, भ्रमण कर रहे हैं। अत: इनकी हत्या कर पाप के भागी मत बनो।’ बस ये चंद शब्द पुण्डरीकिनी नगरी के वन में भीलों के राजा पुरुरवा के कानों में पड़े।’ भद्र परिणामी मेरी पत्नी कलिका रानी, गलत नहीं कह सकती और रोज पंत्तियों के पीछे जरा हलचल देख जंगली जानवरों को अपने बाण से भेदने वाले, पुरुरवा का धनुष नीचे झुक गया। और आगे गया देखने, तो वो दर्शन और उपदेश मिला, जिसने उसके लिये काफी दूर भवों – भवों चलकर तीर्थंकर बनने की राह जैसे खोल दी। शुरूआत होगी तीर्थंकर घराने में जन्म के साथ भक्ति में लीन प्रसन्नचित्त मुनि, उठे आशीर्वाद के लिये हाथ और उपदेश मिला –

‘मेरे वचनों का श्रवण करो और गृहस्थों के लिये एक देश व्रत के रूप में मधु-मांस त्याग, अहिंसा आदि को ग्रहण करो।’ जो अब तक हिंसा कर, पशुओं का वध कर मांस का ही भक्षण करता था, अगले ही क्षण मुनिराज के ये शब्द सुन कर अपने धनुष को वहीं छोड़ दिया और अब तक हिंसा-हिंसा, मांस-मांस करने वाला, व्रती बनकर रहने लगा और फिर इस तरह समाधिमरण के बाद अगला भव पूरे जीवन हत्या करने और मांस खाने के पापास्रव का नहीं, बल्कि व्रतों के पालन करने से पाता है, सौधर्म नाम का महाकल्प विमान में महाऋद्धिधारी देव के रूप में।

ध्यान रहे हिंसा और मांसाहार का विचार जीवन में कभी नहीं,
भव-भव सुधरे, पुण्य फल से उत्तम भव मिलता अगला ही।