आज 23 वे तीर्थंकर श्री पारसनाथ जी का ज्ञान कल्याणक, पर केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई कहां- अहिछेत्र या बिजोलिया तीर्थ

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21 मार्च/चैत्र कृष्णा तृतीया /चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
काफी समय से जैन समाज , उत्तर प्रदेश के अहिछेत्र को 23वें तीर्थंकर की केवल ज्ञान की भूमि मानता आ रहा है। पर कुछ वर्षों पूर्व, मुनि श्री सुधासागर जी ने बिजोलिया तीर्थ में वहां के ऐतिहासिक पत्थरों और उस पर लिखी लिपि के बाद यह स्पष्ट किया कि यह पत्थर कोई और नहीं, कमठ जीव द्वारा ध्यान में मग्न , तप कर रहे महामुनिराज के रूप में, पारसनाथ जी के ऊपर बरसाए थे ।

तो इसलिए वह उपसर्ग धरा ही उनके केवल ज्ञान की भूमि कहीं जानी चाहिए,। ऐसे गंभीर विषयों पर बटे हुए जैन समाज में , कम से कम दिगंबर संप्रदाय में एक मत होना आवश्यक है। अगर हम किसी एक निर्णय पर नहीं पहुंच पाते हैं, तो दो से चार और बंटने में देर नहीं लगती। निश्चित ही ज्ञान कल्याणक, हम सभी के लिए ज्ञान की ज्योति ,हमारे हृदय में प्रकाशित करें ,भावना यही भातें हैं। पर अनुरोध करते हैं कि इस बात पर स्पष्टीकरण होना चाहिए कि हमारे 23वें तीर्थंकर की ज्ञान कल्याणक भूमि उत्तर प्रदेश की अहि क्षेत्र की धरा है या फिर राजस्थान की बिजोलिया की भूमि।

आज चैत्र कृष्णपक्ष तिथि 04 तारीख ,21 मार्च ,दिन सोमवार को 23वें तीर्थंकर श्री 1008पार्श्वनाथ भगवान जी का है ज्ञान कल्याणक , – बैरी कमठ का उपसर्ग दूर होते ही आज के ही दिन प्रातःकाल विशाखा नक्षत्र में आम्रवृक्ष के नीचे केवलज्ञान की प्राप्ति हुई |

इस बार चतुर्थी का क्षय है, इस कारण 23वें तीर्थंकर श्री पारस प्रभु का ज्ञान कल्याणक तृतीय यानि 21 मार्च को मनाया जाएगा। चार माह के कठोर तप क ेबाद अहिच्छत्र (शक्रपुर नगर) के अश्वत्थ वन के धव वृक्ष के नीचे केवलज्ञान की पुष्टि हुई। तत्काल कुबरे द्वारा सवा योजन विस्तृत समोशरण की रचना की। आपके शासन देव धरणेन्द्र और शासन देवी पदमावती हैं। स्वयंभू प्रमुख के साथ 10 गणधर थे। आपका केवली काल 69 वर्ष 8 माह का था।