फागुन कृष्ण एकादशी : दिन एक, कल्याणक तीन, स्वर्ग में बजी शहनाई, बीन

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सान्ध्य महालक्ष्मी डिजीटल /08 मार्च 2021
09 मार्च, हां इसी दिन आ रहा है तीन कल्याणकों का दिवस फाल्गुन कृष्ण एकादशी, जिस दिन प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ जी का ज्ञानकल्याणक और 11वें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी का जन्म-तप कल्याणक है।
जब तीर्थंकरों का कल्याणक होता है, सौधर्म इन्द्र का सिंहासन डोलता है, वह समझ जाता है और मूल शरीर नहीं, अन्य मायावी शरीर से धरा पर आता है कल्याणक मनाने के लिये। पहले बात कर रहे हैं, प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी के ज्ञान कल्याणक की, जिन्होंने राजकुमार और महाराजा के रूप में समाज को लौकिक ज्ञान दिया और फिर केवलज्ञान के बाद परलौकिक ज्ञान। अगर हमें अपनी अतिप्राचीन संस्कृ ति, अपनी अति प्राचीन पहचान को जीवित रखना है, तो प्रथम तीर्थंकर का हर कल्याणक जोर-शोर, धूम-धाम से मनाकर प्रभावना करनी होगी।

आपने एक हजार वर्ष तप किया, इतना ज्यादा तप कि शेष 23 तीर्थंकरों के पूरे तप समय को जोड़ लें, तो भी पांचवां हिस्सा नहीं बनेगा। पुरमितालपुर में आपको केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। 84 गणधरों ने आपके एक लाख पूर्व एक हजार वर्ष तक चले केवली काल में, समोशरणों में अपनी वाणी को सुनकर जनमानस में उस ज्ञान को पहुंचाना।

इसी फाल्गुन कृष्ण नवमी को 11वें तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी के जीव ने सिंहपुर नगर के महाराजा विष्णु राज की महारानी सुनंदा के गर्भ से जन्म लिया। सैधर्म इन्द्र का सिंहासन डोला, उठा सिंहासन से, 7 कदम बढ़ा और पंच नमस्कार किया। दलबल के साथ तुरंत राजमहल पहुंचा, आपको देखते मंत्रमुग्ध हुआ और चल दिया सुमेरु पर।

आपका आयु 84 लाख वर्ष थी, कद 80 धनुष। 21 लाख वर्ष का कुमार काल, फिर 42 लाख पर्वराज और फिर एक दिन बसंत लक्ष्मी का नाश देख – हजार राजाओं के साथ मनोहर वन पहुंचे और पंचमुष्टि केशलोंच कर इसी फागुन कृष्ण एकादशी को तप धारण कर लिया।