अब भी नही चेता समाज, तो जैन समाज अपने अस्तित्व की लड़ाई को हो जाएगा मजबूर

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बीते कई वर्षों से जैन समाज की जनसंख्या में लगातार गिरावट हो रही है। यहाँ तक कि धीरे धीरे हम अतिअल्पसंख्यक होने के निकट हैं। आने बाले समय मे स्थिति और भी भयावह हो सकती है, जरूरत है सामाजिक जागृति की, बर्ना जैन समाज का अस्तित्व ही बोना हो जाएगा। प्रस्तुत है इसी से सम्बंधित कुछ कारण और निवारण-
● पहले विवाह 20 वर्ष तक की उम्र तक हो जाते थे, परिवार में 10 से अधिक सदस्य होते थे, आज “हम दो हमारे दो या हमारा एक” की नीति पर समाज चल रहा है।_
● बेटे-बेटी को अधिक पढ़ाने और जॉब कराने की होड़ ने माता-पिता को बुढ़ापे में अकेले जीवन जीने को कर दिया मजबूर। बेटे के विदेश या महानगरों में शिफ्ट हो जाने, अंतरजातीय विवाह करने आदि से जैन संस्कृति एवम संख्या का ह्रास होता चला जा रहा है।
● कोई अपनी बेटी को गांव या छोटे नगर में व्याहने तैयार नही, परिणाम यह कि गांव के अधिकांशतः युवा अविवाहित रहने को मजबूर। छोटे नगरों का भी लगभग यही हाल।
● बेटों की अपेक्षा बेटियों को अधिक शिक्षा पर ध्यान देने, उनको जॉब कराने की प्रतिस्पर्धा ने भी समाज मे भारी असमानता पैदा कर दी है।
● अधिक आयु में विवाह होने से परिपक्वता अधिक आ जाती है। लड़कियाँ पति को पार्टनर की तरह मानने लगी हैं। जरा सी अनबन क्या हुई, बात सीधे तलाक तक। परिणाम स्वरूप आज बड़ी संख्या में पारिवारिक बिघटन के मामले बढ़ रहे हैं।
● एकल परिवारों में बच्चे के स्कूल जाने, पति की व्यापारिक व्यस्तता में पत्नी का एकाकीपन, आधुनिकता की अंधी दौड़, इंटरनेट और मोबाइल पर बढ़ते संबंध, परिवारों के टूटने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
● अधिक आयु में विवाह होने, लम्बे अंतराल से संतानोत्पत्ति होने, देर से संतान होने से भी जनसंख्या में भारी कमी आ रही है।
● आजकल समाज मे बड़ी संख्या में लड़कों के अविवाहित रहने के मामले में समाज अभी भी गम्भीर नही हैं जबकि यह अति गम्भीर मामला है स्वयं जागें, समाज को जगाएं।
कुल मिलाकर इस ज्वलंत विषय पर हमारी समाज को गंभीरता पूर्वक जाग्रत होना होगा, बर्ना वह दिन दूर नही जब जैन समाज अल्पसंख्यक से अतिअल्पसंख्यक होकर अपने अस्तित्व पर स्वयं संकट उत्पन्न कर बैठेगा।
– अनिल जैन बड़कुल, राष्ट्रीय चैयरमेन, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ, दिगम्बर जैन महासमिति